खंभात का इतिहास । History of Cambay (Khambhat)

खंभात का इतिहास । History of Cambay (Khambhat)

खंभात का इतिहास । History of Cambay (Khambhat)

Cambay History

खंभात के 73 जिनालय के इतिहास जानते है।

कहा है वो दिन ? जब खंभात के 84 बन्दरगाहों पर धव्ज हमेशा के लिए लहरायाँ करते थे ।

1. यहा कुमारपाल राजा को छुपाया गया था। जहाँ से शासन प्रभावक बने ऐसे कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्रचार्य के पावनकारी पगलिये खारवाडा मे है ।

2. आचार्य श्री विजयसेनसूरि के वरद हाथो से बहुत सारी प्रतिमाओ की प्रतिष्ठा हुई है।

3. खंभात पधारे हुए आचार्य भंगवत

देवीन्द्रसूरिश्वरजी , आचार्य हेमचंद्रचार्य , आचार्य हीरविजयसूरि , आचार्य विजयसेनसूरिश्वरजी , आचार्य लब्धिसूरिश्वरजी , आचार्य नेमिसूरिश्वरजी , पूज्य आत्मारामजी , आचार्य भातृचंद्रसूरि , आचार्य देवसूरि , आचार्य वल्लभसूरि , आचार्य रामचंद्रसूरि , आचार्य नंदनसूरि , आचार्य हेमचंद्रसूरि , गच्छाधिपति आचार्य श्री मेरुप्रभसूरि।

4. श्री विनयप्रभ महाराज साहेब ने गौतम स्वामी के रास की रचना यहाँ स्थंभन पार्श्वनाथ, खंभात में की है।

5. खंभात जैन तीर्थ की महेक फैलाने में जिन्होने बहुत बड़ा योगदान दिया है वो उदयन मंत्री, वस्तुपाल, तेजपाल, सोहनलाल, भामाशा, रत्नपाल दोशी, संघवी उदयकरण सोनी , तेजपाल , पारेख , राजिया , वाजिया…

6. श्री शांतिनाथ ताडपत्रीय भंडार में 295 से अधिक ताडपत्रीया व पोथीया है। जो अकल्पनीय है। जैन इतिहास की प्रारंभिक संशोधन का कार्य प्राचीन समय में शांतिनाथ ताडपत्रीय ज्ञान भंडार से हुआ हो ऐसा जान पड़ता है।

7. आबु पर पधराई हुई मूर्ति का पत्थर तेजपाल मंत्री खंभात लाये थे। और मूर्ति खंभात में बनाकर आबु पर्वत ले गये थे। अहो कितनी महेनत , कितना खर्च , कैसा विचार , कैसी भावना

8. जीराला पाडा में बड़े जिनालय में श्री नेमिनाथ परमात्मा के साथ श्याम वर्ण की छोटी प्रतिमा श्री जीरावला पार्श्वनाथ भगवान की जान पड़ती है। पूज्य आचार्य बप्पभट्टसूरिश्वरजी महाराज साहेब आमराजा को प्रतिबोध कर …
श्री नेमिनाथजी की प्रतिमा मे दो नासिका है।

9. खंभात के श्री माली हरपति शाह ने भी गिरनार के नेमिनाथ प्रासाद का उद्धार किया था , उसका उल्लेख मिलता है। ई.स. 1200 की आसपास लगभग 52 जैन प्रतिमाए और 16 परीकर खंभात के माणेकचोक विस्तार में से कुँआ खोदते समय मिली थी जो संप्रति महाराज की प्रतिमाए है परंतु श्री मूलनायक मल्लिनाथ भगवान की प्रतिमा अभी तक प्राप्त नही हुई है।

10. वस्तुपाल तेजपाल के समय में संडरेक गच्छ के आचार्य यशोभद्रसूरिजी के शिष्यो आचार्य श्री शांतिसूरिजी , आचार्य श्री सुमितसूरिजी महाराज साहेब आदि प्रतिष्ठित की हुई बडी संख्या मे जिन बिंब यहा पर बिराजित है।

11. माणेकचोक में श्री आदिश्वरजी भगवान श्री शत्रुंजय के मूलनायक आदिश्वरजी दादा की प्रतिमा है । प्रतिमा पद्मासन मे है उसे ओशवाल वंश के वाछीआ और पत्नी सोहामणी के पुत्र तेजपाल और उनकी पत्नी तेजलदे ने आदिनाथ का जिनबिंब का निर्माण करवाया था और आचार्य विजयसेनसूरिजी ने अकबर के समय उसकी प्रतिष्ठा करवायी थी।

12. विक्रम संवत 1639 ( ई.स. 1583 ) में सुधर्मगच्छ के विजयदेवसूरि ने खंभात पधारे। वो तीन दिन रहे थे। और कंसारी पार्श्वनाथ के दर्शन किये थे। कंसारी गांव में से यह प्रतिमा आई थी। खारवाडा में कंसारी पार्श्वनाथ नाम का जिनालय है। ( श्री विसा ओशवाल ज्ञाती ) जो श्रावण सुद 10 को ध्वजारोहण किया जाता है।
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