श्री शत्रुंजय तीर्थ की स्तुतियां | Shree Shetrunjay Tirth ki Stuti

श्री शत्रुंजय तीर्थ की स्तुतियां | Shree Shetrunjay Tirth ki Stuti

श्री शत्रुंजय तीर्थ की स्तुतियां | Shree Shetrunjay Tirth ki Stuti

विद्याधर ने इन्द्रदेव जेहने नित्य पूजा,
दादा सीमंधर देशनामां जेहना गुण गावत.
जीवो अनंता जेहना सान्निध्य अर्थ मोक्ष जता,
ते विमल गिरिवर वंदना मुज पाप बहु दूरे था ।॥१॥

षट् खंडना विजयी बनीने चक्रीपदने पामता,
षोडशकषायो परिहरीने सोलमा जिन राजा,
चौमासा रही गिरिराज पर जो दिव्य उपदेश,
ते शांति जिनने वंदना मुज पाप साहू दूर थी ॥२॥

जेनु झरतं क्षीर पुण्य मस्तके जेने पढे.
ते त्रण भवमां कर्म तोडी सिद्धि शिखरे जाइ चढे
ज्यां आदि जिन नव्वाणु पूरव आवी वाणी राणावता

रायण पगला वंदता मुज पाप सहु दुरे थता ॥३॥

जे आदिजिननी आण पामी सिद्धगिरिए आवता,

अणसण करी एक मासूम मुनि पंचकरोड़शुं सिद्धता,
जे नाम था पुंडरीक गिरि एम तिहुं जगत बिरुदावता
पुंडरिकस्वामी वंदता मुज पाप सहु दूरे थता ॥४॥

जे राजराजेश्वर तनी अद्भुत छटा राजा;
शाश्वत गिरिना उच्चशिखरे नाथ जागना शोभता;
जिओ प्रचंड प्रताप थी जगमोहन नी वार्ता;

ते आदिजिनने वंदना मुज पाप बहु दूरे था ॥५॥

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