१. अशोक वृक्ष – जहा परमात्मा का समवसरण होता हे वहा उनके शरीर से १२ गुना ज़्यादा बड़ा आसोपालव का वृक्ष देवता बनाते हे। उस वृक्ष के निचे बैठ के परमात्मा देशना देते हे।
२. सुरपुष्प वृष्टि – एक योजन तक देवता सुगंधि ऐसे पांच वर्ण के फूल की वृष्टि गुडे तक करते हे
३. दिव्य ध्वनि – परमात्मा मालकोश राग में देशना दे रहे होते हे तब देवता उसमे वीणा, बांसुरी आदि साधनो से मधुर ध्वनि देते हे।
४. चामर – रत्नजड़ित सुवर्ण की डंडे वाले चार जोड़ी सफ़ेद चामर से देवता परमात्मा की पूजा करते हे।
५. आसन – परमात्मा को बैठने हेतु रत्नजड़ित सुवर्णमय आसन देवता बनाते हे।
६. भामंडल – परमात्मा के मुख पर इतना तेज होता हे की आम इन्सान उसे देख नहीं सकता इस लिए देवता भामंडल की रचना करते हे जो शरद ऋतु के सूर्य के जैसा दीखता हे, यह भामंडल परमात्मा के मुख के तेज को अपने अंदर खिंच लेता हे जिससे उनका मुख सामान्य मानवी देख सकता हे।
७. दुंदुभि – परमात्मा का समवसरण हो तब देवता देव दुंदुभि आदि वाजिंत्र बजाते हे, जो यह सूचन करता हे की “हे भव्य जीवो ! आप सब शिवपुर तक ले जाने वाले इन भगवंत की सेवा करो”
८. छत्र – परमात्मा के मस्तक के ऊपर मोतिओ के हार से सुशोभित ऐसे छत्र देवता बनाते हे – परमात्मा पूर्व दिशा में बैठते हे और देवता उनके तीन प्रतिबिंब बना के बाकी तीन दिशा में स्थापित करते हे – सभी दिशा में तीन छत्र होते हे ऐसे कुल १२ छत्र बनाते हे।
यह आठ गुण देवता द्वारा निर्मित होते हे, इन्हे अष्ट प्रातिहार्य कहते हे। बाकि 4 गुण परमात्मा के होते हे। हमें सोचना हे की क्या हम पूजा, स्नात्र आदि भक्ति करते हे तब समवसरण जैसा माहोल बनाते हे ? कही कोई मुनीवर प्रवचन दे रहे होते हे तो क्या हम समवसरण की महक महसूस करते भी हे ? एक बात हे – इन आठ प्रातिहार्य में से एक गुण हमने खूब अपनाया हे – वो हे दिव्य ध्वनि – परमात्मा की वाणी में देवता बांसुरी के मधुर स्वर जोड़ देते हे और आज के मॉडर्न देवता हम व्याख्यान में मोबाइल के अति मधुर स्वर जोड़ देते हे। कई बार देखा गया हे की व्याख्यान चल रहा हो और हमारे मोबाइल बजते हे उस समय। हमें ये सोचना चाहिए और शिस्त बनानी चाहिए की व्याख्यान में जाए तो मोबाइल साइलेंट करके बैठे। हमारी वजह से कितने लोगो की व्याख्यान रूचि में भंग होगा।
परमात्मा की भक्ति करो तो ऐसे की देवता भी झुक जाए। कही हम देख पाते हे की चामर सालो पुराने होते हे, कही एकदम छोटे छोटे चामर होते हे, कही छत्र एकदम काले होते हे, कही पंखे और दर्पण टूटे हुए होते हे, कही तो परमात्मा की प्रतिमा जी का भी हाल बुरा हे। यह सब कैसे हो ? क्या हमारा कोई कर्तव्य नहीं हे ? नए नए मंदिर हम बनवाते जाये और पुराने प्राचीन जिनालय, जिन प्रतिमा का ध्यान ना रखे तो क्या फायदा ? अगर घर में बहु बेटे अपने माँ बाप को परेशान करे तो हम कहते हे तुम्हारे बेटे भी बड़े हो के तुम्हे यही सबक देंगे – तो ज़रा सोचो, अगर पुराने जिनालयों का ख्याल ना रखा और नए बनवाते गए तो १०० साल के बाद हमारे बनाये हुए नए जिनालय का हाल भी यही होगा जो अभी हम पुराने का कर रहे हे। जिनालय बनाना जरुरी हे लेकिन जो हमारा प्राचीन समृद्ध वारसा हे उसको भी हमें सम्हालना हे।
अरिहंत परमात्मा की ऐसी ही उच्च भक्ति होनी चाहिए। अगर भक्ति में उच्च भाव आ गए तो समोसरण साक्षात नजर होगा। इस समोसरण को दूर को देखने से मरुदेवा माता मोक्ष को प्राप्त कर गए। हमारी सब की इच्छा होती हे की समोसरण देखने का मौका मिले – अगर हमारा सत्व सही रहा तो समोसरण जिनालय में ही बन जायेगा और खुद सीमंधर स्वामी सामने दिखेंगे। यही भाव लाना जरुरी हे – कर्म खपाने के लिए अरिहंत परमात्मा की अपूर्व भक्ति रोज करनी चाहिए।