Suvichar

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प्रश्न ज्ञानी को राग तो होता है, फिर भी उसे वैरागी क्यों कहते है ?

पू. गुरुदेवश्री प्रथम तो ज्ञानी को परमार्थ से राग होता ही नहीं; क्योंकि राग के समय ज्ञानी जानता है कि मैं ‘तो ज्ञान हूँ ‘, मेरा आत्मा ज्ञानमय है –रागमय नहीं है, राग मेरे ज्ञान से भिन्न है । इसके अतिरिक्त ज्ञानीको उस राग की रूचि नहीं है । राग मुझे हितकर है –ऐसा ज्ञानी नहीं मानता । स्वभाव सन्मुख दृष्टि उस समय भी छूती नहीं है और राग में एकत्वबुद्धि भी नहीं है, इसलिए ज्ञानी वास्तव में वैरागी ही है । अज्ञानी तो अकेले राग को ही देखता है; परन्तु उसी समय ज्ञानी का ज्ञान उस राग से भिन्न पड़कर अन्तरस्वभाव में एकाकरपने परिणम रहा है, उसे अज्ञानी नहीं पहचानता ।

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