पत्र साधर्मिक का….

पत्र साधर्मिक का….

पत्र साधर्मिक का….

पत्र साधर्मिक का…

आदरणीय खुशहाल भाई साहब,

शायद आप मुझे जानोगे नहीं लेकिन में आप ही हु। आपका ही भूतकाल हु आपका ही अतीत हु, में एक साधर्मिक भाई हु।

में कुछ लिखना चाहता हु जो मेरी फ़रियाद नहीं हे लेकिन मेरी भावना हे। कभी आप भी इस दौर से गुजरे थे जब आपको तो वक्त का खाना भी मुश्किल था, आपके घर में भी रौशनी नहीं थी और एक ही कमरे में आप पांच लोग रहते थे। किस्मत और आपकी मेहनत का रंग हुआ की आप खूब आगे बढे, इतना बढे की लोग आपको देखते तो उनकी नजर ऊँची हो जाती, आप ऐसी ऊंचाई पे आ गए। आप बड़े लोगो के कोई कार्यक्रम होते हे उसमे आप अनेको बड़े बड़े खर्चे करते हो, धीमे धीमे आपने समाज में नए नए रीत रिवाज शुरू किये हे। लेकिन कभी कभी यह भी सोच लो आपके पीछे और लोगो को जुड़ना पड़ता हे। बढ़ते रिवाजो के साथ साथ कवर में पैसे भी बढ़ते रहते हे। आपके लिए 1000 का कवर भी छोटा हे और हमारे लिए 100 का कवर भी बड़ी बात हे। लेकिन आपकी वजह से हमें मजबूरन आगे बढ़ना पड़ रहा हे। जब आप यहाँ थे तब तो आप ऐसे नहीं थे, आप हमारे भाई थे लेकिन आप वहाँ गए उसके बाद आप हमारे बॉस बन गए हे ऐसा लगने लगा हे। आपको मेरी बात कड़वी लगेगी लेकिन भूतकाल में यही बात आपको मीठी लग रही थी। में आपकी निंदा नहीं कर रहा और ना ही शिकायत। मेरी तो बस एक विनती हे की आप अपने भूतकाल को ना भूले क्युकी भविष्य किसी ने नहीं देखा। इस बात की कोई गैरंटी नही हे की आपका वर्तमान आपका भविष्य बना रहेगा।

कभी आप अपने लोगो के बीच आओ तो पता चलेगा कैसे लोग जी रहे हे।
में वो हु जो दुःख होते हुए भी जमीनकंद और दूसरी सब्जी बेचकर अपना घर चलाता हु, आप लोग मेरी निंदा करते हो की जिनशासन में आ कर भी कंदमूल बेचता हे लेकिन यह मेरा शोख नहीं हे मेरी मज़बूरी हे। मुझे भी हिंसा का मार्ग नहीं अपनाना लेकिन आप ही कोई अहिंसक मार्ग बतला दो।

में वो हु जो सुबह 4 बजे उठ के कड़ी ठंड में भी पेपर डालने जाता हु और कपड़े की दूकान में रात को 10 बजे तक नौकरी करता हु, आप कहते हो की चौविहार नहीं करता लेकिन यह मेरा शोख नहीं हे मेरी मज़बूरी हे। में भी चाहता हु की रात्रिभोजन को बंध करू लेकिन आप ही कोई चौविहार का रास्ता बना दो।

में वो बहन हु जिसको ठीक से कपड़े पहनने का भी नसीब प्राप्त नहीं होता और आप जैसे बड़े लोगो के घर से कभी कपडे आ जाते हे वो पहनती हु। आप कहते हो की कपडे पहनने का ढंग ही नहीं यह लेकिन मेरा शोख नहीं हे मेरी मज़बूरी हे। आप ही कपडे खरीदने का कोई नुस्खा सीखा दो।

में वो बहन हु जिसका पति नहीं और तीन बच्चे हे, यहाँ से वहा भटकती हु ना घर हे ना पैसा। मेने आप से किसी धर्मशाला में नौकरी मांगी तो आपने ही कहा आप मेरे समुदाय के नहीं। फिर आप ही कहते हो की यह कैसी माँ हे जो बच्चो को रास्ते पर सुलाती हे। लेकिन यह मेरा शोख नहीं हे मेरी मज़बूरी हे। आप ही मुझे घर बनाने का मार्ग बता दो।

में वो हु जो मज़बूरी से अपने बच्चो को स्कूल नहीं भेज सकता उन्हें नौकरी पे बैठा दिया। आप कहते हे की बच्चो को पाठशाला भेजो, धार्मिक बनाओ। में नहीं भेज पा रहा, में भी चाहता हु मेरे बेटे संस्कारी बने, दीक्षा भी ले ले लेकिन यह मेरा शोख नहीं हे मेरी मज़बूरी हे। आप ही उन्हें शिक्षित बनाने का तरीका दिखा दो।

याद रखना में नहीं चाहता की में कही और जाऊं, किसी और धर्म को अपनाउं – कभी में ऐसा करता हु तो आप ही कोसते हो की गलत किया, बुद्धि चली गयी हे क्या – में अपने धर्म को, समकित मार्ग को और जिनेश्वर परमात्मा को छोड़ना नहीं चाहता लेकिन यह मेरा शोख नहीं हे मेरी मज़बूरी हे। आप ही मुझे अपने शासन में स्थिर रहने का मौका दिलवा दो।

में वो हु जो आपके बीच रहता हु फिर भी आप से दूर हु,
में वो हु जो आपके पास रहता हु फिर भी आप से निचे हु
में वो हु जो आपके काम आता हु फिर भी आप के काम का नहीं हु
क्योकि में एक साधर्मिक हु।

आपके लाखो के दान से मेरा 500 रुपये का दान अच्छा हे क्योकि आप करोडो कमा के लाख देते हो में 700 कमा के 500 दे देता हु – (मुंबई के एक साधर्मिक भाई की सत्य घटना),
आपके घर में थोड़ी सी खरोच आये तो नया घर ले लेते हो, मेरे घर में छत से पानी आये उसे में कर्मो का उदय समझती हु – (मुंबई की एक साधर्मिक विधवा श्राविका)
आपके घर में मेहमान आ जाये आपको अच्छा नहीं लगता, मेरे घर में 7 लोगो का ध्यान में रखता हु – (अहमदाबाद का बिना कमाई वाला श्रावक)

ऐसे तो कितने उदाहरण आपको में दू – शायद आप सुनते पढ़ते तक जाओगे में बोलते हुए भी नहीं थकूंगा। आपको कभी लगता हे इन लोगो का यही रोना धोना होता हे लेकिन एक सामान्य घर वाला कितना चलाये ? महंगाई आपको नहीं दिखेगी लेकिन कही 5 रूपये बढ़ते हे तो हमें नींद नहीं आती। आखिर कब तक हम इसे कर्मो का उदय समझ के टालेंगे ? हमारी सहन शक्ति कब तक बनाये रखे ? आपको बस इतना याद दिलवाना हे की आप भी कभी यही थे, तो वहा जा के हमें भूल क्यों गए ? आप 10 लोगो को भी आगे लाते हो, 10 परिवार आगे आएंगे वो 10 और 100 को आगे ले आएंगे, ऐसे ही तो हमारा जैन शासन आगे आएगा।

आप कही मंदिर आदि जगह पर बड़ी बड़ी रकम देते हो। हमें भी अच्छा लगता हे। जिनेश्वर परमात्मा का ठाठ देख के हमें अत्यंत ख़ुशी होती हे। हम यह नहीं कहते की आप धार्मिक कार्यक्रम ना करो लेकिन बस उसका सिर्फ 1 % साधर्मिक उत्थान में लगाओगे तो भी हमारे लिए बहोत हे। दान देने के सात क्षेत्र में 2 साधर्मिक के भी हे। कितनी ही श्राविका विधवा हे या अकेली हे जैसी तैसी हालत में जीवन बिता रही हे – फिर कही प्रभावना लेने में वह दो तीन बार आती हे तो आप डांटते हो – लेकिन यह हमारा शोख नहीं हे हमारी मज़बूरी हे।

आप के बड़े कार्यक्रम सफल तभी होते हे जब उसमे हम सब आते हे। अगर हमने आना बंध कर दिया तो क्या होगा ? हम कही और ना भटके यह देखने का कार्य आपका हे। कही पढ़ने में आया अनेक लोग क्रिस्चियन बन गए, गलती किसकी ? समकित मार्ग से हटाने का कार्य किसने किया ? क्या आप अपनी आवक के 10 % साधर्मिक को नहीं दे सकते ? 10 % ना हो तो 2 % ही दे दो। और आप उसको वापिस भी लेने की शर्त रखो। बस हमें एक सपोर्ट चाहिए। आप यह सोचो की एक एक साधर्मिक दूसरे 10 को आगे ले के आएगा।

राजस्थान के किसी गांव में नियम हे की शादी हो तो अपने गाँव में ही करनी हे। गांव में घर में थोड़ी ही सजावट करनी हे। सिर्फ एक बार का भोजन, उसके अलावा कोई फंक्शन नहीं। जिससे गाँव के दूसरे साधर्मिक भाइओ को ऐसे खर्चो का बोझ ना पड़े। सभी के लिए एक समान नियम। हम ऐसे नियम की अनुमोदना करते हे जिसमे सभी को एक साथ समाविष्ट कर दिया। क्या हम ऐसे नियम नहीं बना सकते ?

आपने तो मुझे साधर्मिक फंड की चीजे लेने के लिए भी लाइन में खड़े रहने को मजबूर कर दिया हे। आप खुद सोचो यह साधर्मिक भक्ति हे या साधर्मिक दया ? सभी जीव तीर्थंकर या केवली बनने की क्षमता रखते हे और जिनशासन मिलने के बाद तो यह संयोग और बढ़ जाते हे। ऐसे जीवो को आप लाइन में रख के जीवन जरुरी चीज दे यह उचित हे ? या संपूर्ण सन्मान से, तिलक कर के, पैरो को छू के बहुमानपूर्वक उन्हें चीज वस्तु देनी चाहिए ? अनेको परिवार और अनेको संस्था ऐसे ही अत्यंत सन्मान से हमें स्वीकार रहे हे तो आप क्यों नहीं ?

आपके परिवार में कोई अन्य धर्म की बेटी शादी कर के आ जाये तब भी कुछ नहीं और हमारे परिवार में जैन लेकिन अन्य समुदाय की बेटी आ जाये तो आप आँखे दिखाते हो। हमारे परिवार से दीक्षा हो तो आपको उत्साह कम हे और आपके परिवार में छोटी तपस्या हो तो आपको अत्यंत आनंद हे। धर्म की अनुमोदना तो हर जगह बराबर होती हे ना। उन अनेको अनेको लोगो को भी देख लो जो साधर्मिक को पूज्य मानते हे, उन्हें अत्यंत सन्मान देते हे और घर पधारे तो दूध से उनके पैर धोते हे। यही तो सिखाता हे हमें हमारा जैन शासन। क्या आप ऐसा नहीं बनना चाहोगे ?

आपके अच्छे उत्तर की प्रतीक्षा में….

साधर्मिक

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रोज अनेको लोग सुबह उठते हे यही सोच के की कब यह जीवन पूरा हो। कोई सोचता हे आज खाएंगे भी या नहीं। हम भले सोचे की सब सुखी हे लेकिन वास्तविकता अलग हे। अनेको साधर्मिक ऐसे हे जो दुःख के जंगल में अकेले हे, हमें उन्हें वहा से बहार निकालना ही हे। और मोक्ष के सुनहरे मार्ग पे ले आना हे। इसी लिए टीम वीर गुरुदेव की और से “साधर्मिक उत्थान” का कार्य शुरू हो रहा हे जिसमे “प्रोजेक्ट जैन व्यापार” के अंतर्गत बिना किसी भेदभाव के जैन भाई बहेनो के व्यापार को गति देने का प्रयत्न किया जायेगा। आप सब भी इसमें जुड़े और अपना योगदान हे। अगर आप इन्वेस्ट नहीं करना चाहते लेकिन साधार्मिको के लिए कुछ करना चाहते हे तब भी आप हम से जुड़िये और अपने ही लोगो के लिए कुछ कीजिये।

अगर आज का आर्टिकल पसंद आये तो दो नियम लीजिये –
1. किसी साधर्मिक भाई बहेनो निंदा नहीं करेंगे
2. कोई भी चीज खरीदनी हो साधर्मिक की दुकान से पहले लेने का प्रयत्न करेंगे

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