मर्यादा हे सब से बड़ा गहना, सुन ले ओ बहना…

मर्यादा हे सब से बड़ा गहना, सुन ले ओ बहना…

मर्यादा हे सब से बड़ा गहना, सुन ले ओ बहना…

मर्यादा हे सब से बड़ा गहना, सुन ले ओ बहना…

आज की बात हे बहेनो की मर्यादा की

ज़माने के साथ चलना चाहिए, आज की लाइफ में थोड़ा तो एडजस्ट करना पड़ता हे – ऐसे वाक्य सुनने को मिलते हे जब आज की लड़की अंतराय धर्म में (M.C.) होती हे। यह एक बेहद संवेदनशील चर्चा हे लेकिन अज्ञानता की वजह से कितने ही पाप होने लगते हे इसका ज्ञान नहीं हे। पहले के समय में स्त्री इतनी मर्यादा में थी की बुज़ुर्गो के सामने आँख उठाना भी पाप मानती, इसका यह मतलब नहीं हे की स्त्री को कोई हक़ नहीं हे या उस पे पाबंदी लगाई गई हे लेकिन बड़ों का सन्मान रखना स्त्री की नैतिक फर्ज थी – जब भी स्त्री अंतराय धर्म में आये तब उसे एक अलग कमरे में रखा जाता, जो घर के बहार होता – उसको खाना पत्ते की थाली में दिया जाता और ३ दिन तक उसका चेहरा कोई न देख पाता और न वो किसी का चेहरा देख शक्ती, उसकी थाली आदि का विसर्जन वो खुद करती – इतना चुस्त पालन होता था। इसकी वजह यही थी की अंतराय धर्म की दिन उसका शरीर एकदम अपवित्र रह जाता हे।

आज भी अगर हमारे शरीर से खून या परु आदि अशुचि निकल रहे हो तो हम परमात्मा की पूजा नहीं करते तो सोचिये अंतराय धर्म के समय जहा बहोत ही ज़्यादा अशुचिमय शरीर रहता हे तो कितनी मर्यादा में रहना चाहिए। परमात्मा की आज्ञा का बहोत उल्लंघन आज कल होने लगा हे। जिसको जो मन में आया वो धर्म समज के चल रहे हे – धर्म हमारी बुद्धि से नहीं हो शकता बल्कि जिसमे परमात्मा की आज्ञा का पालन हो वो ही सच्चा धर्म हे। मॉडर्न ज़माने के चक्करो में कई जगह देखने में आता हे की स्त्री अंतराय धर्म को ही अंतराय समज के उसका पालन भूल रही हे। योग्य समय से पहले ही अंतराय धर्म को छोड़ देती हे, विदेशी संस्कृति में बह के भांति भांति की दवाइया खा कर अंतराय धर्म को दूर करती हे लेकिन वो ये नहीं जानती के ऐसी दवाइया उनके ही शरीर को नष्ट करेगी।

एक सामान्य बात हे अंतराय धर्म कुदरती प्रक्रिया हे और कुदरती प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ करना उचित नहीं हे, फिर कुदरत भी अपना परचा बता के रहेगी। कुछ विचित्र बहाने मिलते हे – – आज कल इतना चुस्त पालन करने जाओगे तो आगे बढ़ने से रहे – जरुरी काम हे इस लिए दवाइया लेनी पड़ती हे – थोड़ा तो चलता हे – काम तो करना ही पड़ता हे – लोग तो खाना भी बनाते हे उनसे अच्छे हम हे जो सिर्फ काम करते हे ऐसी तमाम बातें बोलने वाले से एक सवाल हे क्या परमात्मा की आज्ञा का कोई मूल्य नहीं हे ? पिछले एक शतक से भी कम जो मेकोले शिक्षण भारत में घुसा हे क्या भारतीय स्त्री उसमे इतनी रंग गई हे की अनादि काल से चल रहे हमारे संस्कारो को भूल गई ? क्या मेकोले बड़ा था या हमारे परमात्मा ? क्या वीर की आज्ञा को मानना गलत लगता हे ? कितने ही अजैन ग्रंथो में भी अंतराय धर्म वाली स्त्री को एक ही जगह बैठे रहने को कहा हे। अरे, अब तो जैसे संस्कारो का अग्निसंस्कार ही करना हे ऐसा हो गया हे – मुनिवर घर पे पधारे तो अंतराय धर्म वाली स्त्री को ऐसी जगह चले जाना चाहिए जिससे मुनिवर उसे न देख शके, लेकिन अब तो मानो पश्चिमी संस्कृति में इतने बिंदास हो गए हे की कोई फर्क नहीं पड़ता फिर मुनिवर की निंदा करेंगे ये कहा का धर्म हुआ। कुछ लोग इतने ज़्यादा ज्ञानी हो गए हे की बोलते हे थोड़ा तो चलता हे इसमें कोई बुरी बात नहीं। अपनी मनमानी करवाने के लिए शास्त्रो से विरुद्ध वचन बोलना यानि उत्सूत्र प्ररूपणा – खुद वीर के जीव को गलत बोलने की वजह से संसार में भटकना हुआ था तो सोचिये हमारी क्या हालत होगी।

एक ही वाहन पे दो लोग ऐसे बैठने में दीखते हे जिसमे एक अंतराय धर्म वाली स्त्री होती हे। बड़े शहरों में अंतराय धर्म वाली स्त्री को कही जाना हो तो रिक्षा कर के चल देते हे। फिर कहते हे की अब रिक्षा वाले को क्या फर्क पड़ेगा। क्यों ? वो इन्सान नहीं हे क्या – भले उसे धर्म का ज्ञान न हो हमें तो हे ना। उस इन्सान को तो शायद कोई पाप लगेगा ही नहीं लेकिन रिक्षा में बैठने वाली अंतराय धर्म वाली स्त्री को अवश्य पाप लगेगा और शायद नरकाधिकारी बनेगी क्युकी उसे पता हे उसे ये नहीं करना चाहिए। एक ही रिक्षा में बैठेगी और रिक्षा वाले को पैसे देगी तो क्या वर्षीदान करेगी ? नहीं, हाथ में देगी तो क्या दोष नहीं लगेगा ? धर्मी स्त्री भी हमेशा ये गलती कर बैठती हे – अब यह कौन सा धर्म हुआ ? याद रखिये, धर्म करने से ज़्यादा अधर्म को रोकना जरुरी हे – अंतराय धर्म का पालन तो मुलभुत धर्म हे, अगर इसका ही पालन न हुआ तो क्या करना। आज कल तो एक नया तरीका निकला हे – तीर्थयात्रा, तपस्या का पारणा, महोत्सव आदि धार्मिक अनुष्ठानो में जाने के लिए दवाइया ले के अंतराय धर्म में ख़लील पहुचाई जाती हे। ये बिलकुल गलत बात हे – ये धर्म नहीं अधर्म ही हे – एक सामान्य बात हे मनमानी वाला धर्म करना नहीं हे, परमात्मा की आज्ञा हो वो ही धर्म करना हे और अगर वो न हुआ तो फल भुगतना ही पड़ता हे। जैन धर्म कभी किसी को ये कह के डरता नहीं हे की तुम ऐसा करोगे तो वैसा होगा वगेरह वगेरह – यहाँ आत्मा को जानने और शुद्ध बनाने हेतु अध्यात्म में जाने की बात हे, ब्रह्मचर्य बड़ा धर्म हे और इससे आत्मा निर्मल बनता हे और अंतराय धर्म का पालन आख़िरकार ब्रह्मचर्य के मार्ग से जुड़ता हे। अब जो स्त्री दवाइया खा के अंतराय धर्म को पीछे करेगी और वो भी धर्म करने के लिए ये तो वही हो गया शरीर स्वस्थ होने के बाद भी बाल खा के उलटी करना। जब जिनाज्ञा हे की ऐसे दवाइया खा के धर्म करना गलत हे तो क्यों मन में जो आया वो सही मान के धर्म करना।

मॉडर्न ज़माने को देख के, फिल्मो को देख के अपने आप को मिस 14 राजलोक समझने से अच्छा हे अपनी मर्यादा का पालन करना। कितना सूक्ष्म धर्म बताया गया हे इतना पवित्र चारित्र पालन हे और इतना निर्मल शासन मिला और अपनी स्वछँदता का पोषण करने कहा से कहा जा रहे हे। इसी स्वछँदता का परिणाम हे की बहोत से लोग विदेशो में जा के बसते हे – उनका एक सर्वे किया तो पता चला वहा जो भी श्राविका होती हे वो साफ़ बोलती हे की यहाँ पालन कर ही नहीं शकते – और दुबई, अमेरिका, इंग्लैंड आदि देशो में रहने वाले अंतराय धर्म में भी खुद अपने हाथो से खाना बनाते हे और घर में सब खाते हे। किसी विडंबना हे ये – अरे! एक थे वो स्वामी विवेकानंद जो विदेश गए थे तो पूरी दुनिया में भारत के संस्कारो का डंका बजा के आये थे – आज भारत के लोग वहा गए, घर बसाया – परिवार को ले गए – लोगो की यादो को ले गए – फेसबुक, वॉट्सऐप का साथ हे, शायद घर में परमात्मा की फोटो भी लगा दी लेकिन इतने स्वार्थी क्यों हुए की परमात्मा की आज्ञा को ही नष्ट कर दिया। हमारा घर छोटा हे, घर में हम अकेले हे काम करने वाले, बच्चो को कौन देखेगा – ऐसे शब्द जब सुनने में आते हे। उन श्राविका से इतना कहना हे की “जिसको परमात्मा की आज्ञा शिरोमान्य हे वो कुछ भी हो जाये चाहे आसमान फटे या धरती कंपे, वो श्राविका अपने प्रभु के वचनो का उल्लंघन नहीं करेगी” – अरे धर्म का पालन इतना सूक्ष्म हे की जिसमे अक्षर लिखे हुए हो ऐसी ख़ुरशी पर भी बैठना वर्जित हे तो किताबे, न्यूज़ पेपर आदि पढ़ना तो कल्पता ही नहीं लेकिन आज की आधुनिक नारी मोबाइल पे चैट करती हे। कभी मैसेज आते हे की ३ तीन हम पाठशाला में नहीं रहेंगे – वो ये क्यों भूलते हे की आपको मोबाइल को भी त्याग करना हे, एक अक्षर को छूना भी ज्ञानावरणीय कर्म को मजबूत करेगा। और आज कल मोबाइल में प्रभु के फोटो, धार्मिक गीत आदि बहोत होते हे ऐसे मोबाइल को छूना गलत हे।धार्मिक गीत सुनना नहीं चाहिए लेकिन इस बात का गलत अर्थ ले के कुछ नारी फिल्म के गाने सुनते हे ये भी गलत हे – अक्षर का श्रवण भी जितना कम हो वो अच्छा हे। धार्मिक गीत नहीं सुनने इसका फायदा उठा के असंस्कारी गाने सुनना कौन सी बुद्धिमता हे। शायद कठोर पालन करने वाले भी अंतराय धर्म में मोबाइल को नहीं छोड़ते ये गलत समज को हटाना जरुरी हे। टी वी के रिमोट को भी छूना नहीं चाहिए। ज्ञान मात्र – अक्षर मात्र से दूर रहना हे। कही देखने में आता हे की अंतराय धर्म में श्राविका साध्वीजी के पास जाती हे – बोलती हे की स्त्री हे तो जा शकते हे। ये गलत हे स्त्री हे उससे पहले ये देखना हे की वो एक साध्वी हे, पंचम पद पे बिराजमान हे और पांच पद में से किसी की विराधना नहीं करनी चाहिए। गुरु पद हे – गुरु का अपमान नहीं कर शकते – हमारे मन जो बसा वो धर्म नहीं हे। एक और बात जो आज कल बहोत आम हो गई हे – ओलीजी आदि तपस्या हो या महोत्सव हो वहा अंतराय धर्म वाली बहेनो के लिए व्यवस्था करवाई जाती हे – अब ये न जाने किसने शुरू कर दिया हे – जहा पूर्वजो घर के बहार अलग कमरा रखते थे आज हम सरेआम लोगो के सामने अंतराय धर्म वाली स्त्री को ले आने लगे हे। फिर से वो ही बात हे की अधर्म को रोकना ज़्यादा जरुरी हे और हमारे मन में आया वो धर्म नहीं करना हे। ऐसी बहेनो को ख़ास उनके घर टिफिन भिजवाना चाहिए न की लोगो के सामने आयम्बिल आदि तप करवाना। ये कोई धर्म नहीं हो शकता। अंतराय धर्म वाली स्त्री का मुख देखने से एक आयम्बिल, स्पर्श से छट्ठ, उनके आसन पे बैठने से अट्ठम का प्रायश्चित आता हे अब सोचो अंतराय धर्म वाली स्त्री को ऐसे सब के सामने तपस्या का पारणा करवाना यानि सब को आयम्बिल का प्रायश्चित – अब या तो परमात्मा के वचन गलत थे इस लिए हम आज कल के कुछ सूत्र पढ़े लोग अपनी मनमानी कर के विचित्र रिवाज घुसेड़ रहे हे।

अंतराय धर्म वाली स्त्री संघ के सामने अलग व्यवस्था में तप करे उससे अच्छा हे घर रह के चौविहार करे। और वैसे भी तपस्या कर के पारणे के बाद रात्रि भोजन करना हे तो अपनी वजह से दुसरो को प्रायश्चित दिलवाना सही हे क्या ? अंतराय धर्म वाली बहेनो की गलती हो ना हो लेकिन दूसरे लोगो की गलती बहोत हे क्युकी हम ही बात बात पे उन्हें उकसाते हे की थोड़ा तो चलेगा अब निपटाओ। नहीं ये गलत हे – हमारे काम के लिए ऐसी बहेनो को गलत दबाव डालना अनुचित हे। क्या करना ? अंतराय धर्म वाली बहेनो को इस समय सिर्फ चिंतन करना चाहिए। अपने आत्मा स्वभाव में जाने की कोशिश करनी चाहिए। कैसे वो मोक्ष मार्ग में आगे बढे वो सोचना चाहिए, तत्व चिंतन करना चाहिए। उन्हें बंधन लगता हे उसके बदले ये सोचना चाहिए की आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में चलो तीन दिन तो खुद के लिए मिले। जरुरी नहीं की काम करने लग जाओ – कपडे धोना, झाड़ू पोछा, बर्तन ये सब बेहद गलत हे। आप ऐसे बर्तन को छूते हो और घर के लोग उसमे खाना खाए वो शर्मसार बात हे – आपके अंतराय कर्म की वजह से आप दुसरो को पाप में भागीदार बनाते हो। कई जगह देखने में आता हे घर में कोई विरोध करे तब भी उसकी बातो को दबा के अपनी मनमानी चलाई जाती हे। कही ये भी देखने में आता हे की पूजा करने के लिए अपने योग्य दिनों से पहले भी कोई पूजा शुरू कर देता हे ये भी गलत हे अपने पुरे दिनों का संपूर्ण पालन करना ही चाहिए। कोई ऐसे भी होते हे की पूजा करने से बचे इस लिए ज़्यादा दिन बैठे रहते हे – ये भी धर्म से विपरीत बुद्धि हे।

शास्त्र को साक्षी मान के परमात्मा की आशातना ना हो ये ध्यान रखना चाहिए। विदेशी वैज्ञानिक भी अंतराय धर्म में स्त्री को मर्यादित रहने का सूचन कर चुके हे – शास्त्रो में भी लिखा हे अंतराय धर्म वाली स्त्री अगर घर के काम करे तो घर से लक्ष्मी चली जाती हे। लक्ष्मी का जाना तो सांसारिक बाते हे धर्म मार्ग में इसकी वैल्यू नहीं हे, लक्ष्मी जाएगी तो चलेगा लेकिन धर्म गया तो सब गया।

महावीर के उपदेश की और से विनंती हे तमाम श्राविकाओं से अंतराय धर्म हे ये कर्म की वजह से हे तो अब ऐसे कर्म का बंधन न करो की अंतराय फिर से आये – अंतराय धर्म का पालन कर के मोक्ष का अंतराय तोड़ने का भाव रखो – नए ज़माने के रंग में इतना भी न रंगो की हमारे मूल संस्कार भूल जाये – हमें दुनिया को भारत के संस्कार देने हे न की दुनिया की अश्लीलता हमारे देश में लानी हे। आज़ादी और my life my choice my voice के नाम पे इतने स्वछंद नहीं बनना हे की किसी दिन हमें ही पस्तावा हो। आज भी ऐसे महान श्राविका हे जो इतना चुस्त पालन करते हे की उनकी मिसाले बन जाये। जो श्राविका पालन नहीं कर पा रहे उनसे कहना हे की आप थोड़ी सी कोशिश तो करो डरते क्यों हो। शायद आप संपूर्ण चुस्त न कर पाओ तो थोड़ा थोड़ा सा कर के आगे तो बढ़ो। लेकिन हार मत मानो, थोड़ा लड़ो और धर्म अवश्य आपका साथ देगा।

आखिर में दो बात फिर से : अपनी मनमानी वाला धर्म न बनाये प्रभु की आज्ञा सर्वोपरि हे – आपकी वजह से किसी भी जीव का धर्म खतरे में आये ऐसा ना करे

जिनाज्ञा विरुद्ध कुछ लिखा गया हो तो त्रिविधे मिच्छामी दुक्कडम –

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