81. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

81. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

81. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

गिम्हायवसंतत्तो ,

रण्णे छुहिओ पिवासिओ बहुसो ।

संपत्ती तिरियभवे ,

मरणदुई बहू विसूरंतो ॥८१ ||

: अर्थ :

इस आत्मा ने तिर्यंच के भव में भयङ्कर जङ्गल में ग्रीष्म ऋतु के ताप से अत्यन्त ही संतप्त होकर अनेक बार भूख और प्यास की वेदना से दुःखी होकर मरण के दुःख को प्राप्त किया है ।। 81 ॥

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