104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

किंबहुणा जिणधम्मे ,

जइयव्वं जह भवोदहिं घोरं ।

लहु तरिउमणंतसुहं ,

लहइ जिओ सासयं ठाणं ॥१०४ ॥

: अर्थ :

ज्यादा कहने से क्या फायदा ! भयङ्कर ऐसे भवोदधि को सरलता से पारकर अनन्त सुख का शाश्वत स्थान जिस प्रकार से प्राप्त हो , उस प्रकार से जिनधर्म में यत्न करना चाहिए ।।104।।

Related Articles

× CLICK HERE TO REGISTER