94. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

94. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

94. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

अथिरेण थिरो समलेण

निम्मलो परवसेण साहीणो ।

देहेण जइ विढप्पइ

धम्मो ता किं न पज्जत्तं ॥९४ ॥

: अर्थ :

अस्थिर , मलिन और पराधीन देह से स्थिर , निर्मल और स्वाधीन धर्म की प्राप्ति हो सकती हो तो तुझे क्या प्राप्त नहीं हुआ ? || 94 ॥

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