Categories : Jain Stotra, JAINISM 94. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक अथिरेण थिरो समलेण निम्मलो परवसेण साहीणो । देहेण जइ विढप्पइ धम्मो ता किं न पज्जत्तं ॥९४ ॥ : अर्थ : अस्थिर , मलिन और पराधीन देह से स्थिर , निर्मल और स्वाधीन धर्म की प्राप्ति हो सकती हो तो तुझे क्या प्राप्त नहीं हुआ ? || 94 ॥ Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक