Categories : Jain Stotra, JAINISM 102. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक चउगइऽणंतदुहानल – पलित्त भवकाणणे महाभीमे । सेवसु रे जीव ! तुम , जिणवयणं अमियकुंडसमं ॥१०२ ॥ : अर्थ : हे जीव । चारगतिरूप अनन्त दुःख की अग्नि जलते हुए महाभयकर भववन में अमृतकुण्ड के समान जिनवाणी का तू सेवन कर ।। 102 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक