102. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

102. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

102. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

चउगइऽणंतदुहानल –

पलित्त भवकाणणे महाभीमे ।

सेवसु रे जीव ! तुम ,

जिणवयणं अमियकुंडसमं ॥१०२ ॥

: अर्थ :

हे जीव । चारगतिरूप अनन्त दुःख की अग्नि जलते हुए महाभयकर भववन में अमृतकुण्ड के समान जिनवाणी का तू सेवन कर ।। 102 ।।

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