गच्छाधिपति आचार्य श्री जयंतसेनसूरीश्वर्जी म.सा.
गुजरात राज्य के थराद तहसील के छोटे से गाँव पेप्राल ने वि.सं. १९९३ मगसर वदी १३ दी. ११-१२-१९३६, शुक्रवार की शुभ बेला में धरु परिवार के क्षेष्ठीवर्य स्वरुपचंदजी के घर पूण्यवती माता पार्वतीदेवी की कुक्षी से आपका जन्म हुआ| आपका नाम पूनमचंद रखा गया| १६ वर्ष की युवा वय में सियाणा में वि.सं. २०१० माघ सुदी ४ को आचार्यदेव यतीन्द्रसूरीश्वर्जी म.सा. के वरदहस्तों से आप दीक्षित हुए और आपका नाम मुनि जयंतविजय रखा गया| आप “मधुकर” उपनाम से भी पहचाने जाते है|
वि.सं. २०१७ कार्तिक सुदी पूनम को आचार्य यतीन्द्रसूरीज़ी ने तत्कालीन मुनि श्री विधाविजयजी को आचार्य एवं युवा मुनि श्री जयंतविजयजी को “उपाचार्य” घोषित किया| वि.सं. २०३८ में कुलपाकजी तीर्थ में अ. भा. त्रिस्तुतिक संघ ने मिलकर आपको “आचार्यपद” देने का निर्णय लिया|
वि.सं. २०४० माघ सुदी १३, दी. १५-०२-१९८४ के शुभ दिन भांडवपुर तीर्थ में आपको आचार्यपद से अलंकृत कर आचार्यश्री जयंतसेनसूरीश्वर्जी म.सा. नाम घोषित किया गया| वि.सं. २०४७ सन १९९१ में जावरा (म.प्र.) में भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रीयपति महामहिम डॉ. शंकरदयालजी शर्मा ने आपको “राष्ट्रसंत” की पदवी से सम्मानित किया| आपने शताधिक साहित्य सर्जन किया है| साहित्य मनीषी एवं तीर्थ प्रभावक के रूप में आपने शताधिक जिनमंदिर, गुरुमंदिर एवं ज्ञानमंदिरों का निर्माण एवं प्रतिष्ठा करवायी है| राजराजेंद्र प्रकाशन ट्रस्ट, गुरुराजेंद्र फाउंडेशन ट्रस्ट, गुरु राजेंद्र जनकल्याण ट्रस्ट आदि की स्थापना कर संचालन की जिम्मेदारी सुयोग्य को सौप दी है|
जिणोरद्वार, तीर्थोद्वार आदि अनेक कार्य आपकी निश्रा में संपन्न हुए| भारत के गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्णाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू, उड़ीसा,बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश, पांडीचेरी आदि आपके विहार क्षेत्र रहे| आप आशु कवी भी है और अतुल पुण्य के भण्डार है| आपकी निश्रा में शासन प्रभावना निरंतर जारी