Pandit Vir Vijayji’ life Story

Pandit Vir Vijayji’ life Story

Pandit Vir Vijayji’ life Story

आजे पंडित श्री वीरविजय महाराजानी स्वर्गवास तिथि छे
तेमनो परिचय नीचे प्रमाणे छे
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भादरवा वद ०३ आजे १६६ मी पण्डितवर्य श्री वीरविजयजी महाराजा* नी स्वर्गारोहण तिथि छे तेमनो जन्म अमदावादशहेरमां घीकांटा मध्ये शान्तिनाथना पाडामां जज्ञेश्वरनामना औदिच्य ब्राह्मण नी भार्या श्री विजकोर बहेननी कुक्षी ने विशे एक पुत्री तथा एक पुत्रनो जन्म थयो पुत्री नुं नाम गंगा पुत्रनुं नाम केशवराम जेमनो जन्म संवत १८२९ ना आसो सुद १० ना रोज थयो संस्कृत आदि भणवानुं सारु हतुं केशवराम ना लग्न १८ वर्ष नी उंमरे रलियात नामनी स्त्री साथे थया संसार जीवन त्रण वर्ष चाल्यो हशे ने पितानुं मृत्युं थयुं पछी केशवराम भीमनाथ गामे गया हता ते दरम्यान घरमां चोरी थई केशवराम पाछा आव्या त्यारे माताए ठपको आपता घर छोडीने रोचका गामे चाल्या गया माताए घणी शोध खोज करी पण मल्या नही पतिनो वियोग अने पाछो पुत्र नो वियोग सहन न थता मृत्युं पाम्या अने तुरत बहेन पण मृत्युं पामी आ बाजुं केशवराम ने शुभविजयजी महाराज भीमनाथ गामे मल्या अने साथे विहार करी पालिताणा आदि फर्या १९४८ मां पानसरा कारतक वद ०३ ना दिवसे दीक्षा ग्रहण करी अने वीरविजयजी नाम आपवामां आव्युं १२ वर्ष सुधी गुरुदेव नी साथे रही विहार कर्यो जीवनमां जैन धर्म नी प्राप्ति थया पछी चारित्र अंगिकार करी संयम जीवनना प्रभाव तथा *मां महालक्ष्मी पद्मावती* नी कृपाथी नीचेनी कृतियों नी रचना करी जगतने भेट आपी छे
१८५७ सुर सुंदरीनो रास
१८६२ स्थुलिभद्र शियलनी वेल
१८६५ चौमासी देववंदन
१८७४ *चोसठप्रकारी पूजा*
१८८१ पीस्तालीस आगमनी पूजा
१८८४ नव्वाणुं प्रकारनी पूजा
१८८७ बार व्रतनी पूजा
१८८९ पंचकल्याणकनी पूजा
१८९३ मोतीशा टुंकना ढालिया
१८९६ धम्मिल रास
१९०३ चन्द्रशेखर रास
१९०१ सत्तावीश भवनुं स्तवन
१९०३ हठीसिंहना देरासरना ढालिया
१८५८ अष्टप्रकारी पूजा
स्नात्रपूजा
१८६० शुभवेली
१८५३ गोडी पार्श्वनाथ ढालिया एवं
हित शिक्षा छत्रीसी आदि
अनेक रचना करी जिनशासन ने जयवंतु राखेल छे त्यारबाद १९०८ मां तेओ बिमार पड्या श्रावण वद ०३ ना दिवसे आजीवन साध्य एवां महालक्ष्मी पद्मावतीजीनी प्रतिमा ने गोखलामां स्थापित कर्या अने भादरवा वद ०३ ना दिवसे गुरुदेव कालधर्म पाम्या ते उपकारी महा मुनिवरनी १६६ मी स्वर्गारोहण तिथि छे तेमना चरणोमां कोटि-कोटि वंदना ने
भावभीनी श्रद्धांजलि

Article : Muni Bhagyachandra Viajyji M.S.


कविवर पंडित
*श्री वीरविजयजी महाराज* की पुण्यतिथि पर विशेष
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*एक अजैन से जैनधर्म का महान् सफ़र*
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• कभी राजनगर के गौरवशाली नाम से जाना जाता अहमदाबाद जैनधर्म का प्रमुख केन्द्र था.
बहुत बड़े-बड़े धर्मानुरागी, उदारमना सेठ-श्रीमंत वहां निवास करते थे.

• वहीं घीकांटा क्षेत्र में एक *औदीच्य ब्राह्मण परिवार* में आज से 245 वर्ष पहले ईस्वी सन् 1773 में एक बालक का जन्म हुआ था. नाम रखा गया : *केशवराम.*

• नन्हीं उम्र में उनके पिताजी का स्वर्गवास हो गया और युवावस्था की डगर पर कदम रखते ही उनका विवाह करवा दिया गया.

• एक बार केशवराम कुछ दिनों के लिए दूसरे गांव गये थे और घर में चोरी हो गई. घर लौटने पर डरी हुई *मां ने केशवराम को बहुत डांट सुनायी. नाराज़ होकर वे घर छोड़ कर चले गये. फिर वे लौटकर कभी घर नहीं आये.* उनकी बहुत खोजबीन की गयी, पर कहीं से उनका पता नहीं लगा. इस बीच केशवराम की जन्मदात्री मां का भी देहांत हो गया.

• इधर गुजरात के भीमनाथ गांव में *केशवराम ब्राह्मण का जैन मुनि प्रवर श्री शुभविजयजी महाराज से परिचय हुआ.*

• वैराग्य भावों से भरे सत्त्वशाली केशवराम जैन श्रमण श्री शुभविजयजी महाराज के साथ पालीताणा की यात्रा पर निकल पड़े. आगे चलकर उन्होंने पानसर में महामुनिश्वर श्री शुभविजयजी महाराज का शिष्यत्व स्वीकार करते हुए *जैनदीक्षा अंगीकार कर ली. केशवराम का नाम मुनि श्री वीरविजयजी महाराज रखा गया.*

• गुरु के सान्निध्य में वर्षों तक सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र की निर्मल साधना कर मुनि श्री वीरविजयजी महाराज ने जीवन को भव्यता से महकाया.

• इस बीच उन्होंने अरिहंत प्रभु के अनुग्रह और पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से *राज राजेश्वरी एकावतारी भगवती मां पद्मावती* की निष्काम भाव से जिनशासन के हितार्थ मंत्र उपासना व ध्यान साधना की. साधना की सिद्धि का यह पुण्यप्रताप था कि एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्में हुए मुनि वीरविजयजी महाराज सरस्वती के वरद्धपुत्र के रूप में जिनशासन के स्वनामधन्य विद्वान् श्रमण और जाने-माने काव्य रचयिता बने.

• आज भी पुराने अहमदाबाद के भट्टी की बारी के श्री वीरविजयजी उपाश्रय में साधना से अधिष्ठित पंचधातु की श्री पद्मावती माता की वह चामत्कारिक मूर्ति प्रतिष्ठित है.

• पंन्यास श्री वीरविजयजी महाराज ने सरल मारुगुर्जर भाषा में विविध पूजाओं और काव्यों की रचना कर जैनधर्म और साहित्य जगत् को अनेक यशस्वी अमूल्य कृतियों का खज़ाना प्रदान किया.

• ईस्वी सन् 1801-1802 में उन्होंने अपनी साहित्य रचना का शुभारंभ किया था.

• विश्व भर के छोटे-बड़े हजारों श्वेतांबर मंदिरों में गूंजती और हर पूजन के पहले पढ़ाई जाती *भावभरी स्नात्र पूजा उनकी अमर रचना है.*

• उन्होंने ईस्वी सन् 1802 में श्री अरिहंत प्रभु की वैविध्यपूर्ण भक्ति के लिये *अष्टप्रकारी पूजा* रची थी. 1818 में कर्मवाद की काव्यात्मक प्रस्तुति के रूप में उन्होंने *64 प्रकारी पूजा* बनाकर कर्म की फिलोसोफी को बेहतर ढंग से समझाया.

• ईस्वी सन् 1825 में सम्यग्ज्ञान की उपासना के तौर पर उन्होंने *45 आगम की पूजा* बनाकर समाज पर बहुत बड़ा उपकार किया. उसके 3 वर्ष बाद 1828 में *श्री आदिनाथ नव्वाणु प्रकारी पूजा* बनाकर पंडित श्री वीरविजयजी महाराज ने शत्रुंजय महातीर्थ की महिमा का लाज़वाब गान किया.

• सन् 1832 में श्रावकाचार का महत्व बतलाते हुए उन्होंने *12 व्रत की पूजा* रची. ईस्वी सन् 1833 में बनायी गयी आपकी *श्री पार्श्व पंचकल्याणक पूजा* ने तो लोकजीवन को भक्तियोग से ओतप्रोत कर दिया. उन्होंने इस पूजा में अरिहंत प्रभु के जीवनकाल की जीवंत अनुभूति करवायी.

• इसके अतिरिक्त पूज्य *श्री वीरविजयजी महाराज ने सुर सुंदरी का रास, स्थूलिभद्रजी के शील का गौरवशाली काव्य, सेठ मोतीशा की टूंक का ढालिया, वीर प्रभु के 27 भावों का स्तवन, श्री गोड़ी पार्श्वनाथ का ढालिया और सेठ हठीसिंह के देहरासर का ढालिया बनाकर जैन इतिहास को जन-जन तक पहुंचाया.*

• उनकी पूजाएं और उनके अन्य अनेक काव्य जैनदर्शन, जैनाचार, तत्वज्ञान, कर्मवाद, जैन इतिहास, प्रभु भक्ति के स्वरूप तथा तीर्थ की महिमा और सम्यग्ज्ञान की महत्ता का आकर्षक भावों में अत्यंत सरल प्रस्तुतीकरण हैं.

• पूज्य पंडितवर ने इन रचनाओं के द्वारा अबोध जीवों के बोध और भक्ति हेतु अभूतपूर्व कार्य किया. इस प्रकार *श्री वीरविजयजी महाराज जिनशासन के भक्ति इतिहास के अमर हस्ताक्षर बन गये.*

• 79 वर्ष की आयु में ईस्वी सन् 1852 में भाद्रपद कृष्ण तृतीया के दिन आपका स्वर्गवास हुआ. *एक ब्राह्मण बालक की यह कथा यह सिद्ध करती है कि मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान् बनता है !*

• ऐसे वीरप्रभु की उज्जवल परंपरा के वीरपुत्र पंडित श्री वीरविजयजी महाराज को भावभीनी वंदना.

Article By

Pujya Acharya Vimal sagar Suriji M.S.

 

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