Categories : Jain Stotra, JAINISM 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक विसमे भवमरुदेसे , अणंतदुहगिम्ह तावसंतत्ते । जिणधम्मकप्परुक्खं , सरसु तुमं जीव सिवसुहदं ॥१०३ ॥ : अर्थ : हे जीव ! अनन्त दुःख रुप ग्रीष्म ऋतु के ताप से सन्तप्त और विषम ऐसे संसाररुप मरुदेश में शिवसुख को देनेवाले जिनधर्म रुपी कल्पवृक्ष को तू याद कर ॥103 ॥ Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 102. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक