Categories : Jain Stotra, JAINISM 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक किंबहुणा जिणधम्मे , जइयव्वं जह भवोदहिं घोरं । लहु तरिउमणंतसुहं , लहइ जिओ सासयं ठाणं ॥१०४ ॥ : अर्थ : ज्यादा कहने से क्या फायदा ! भयङ्कर ऐसे भवोदधि को सरलता से पारकर अनन्त सुख का शाश्वत स्थान जिस प्रकार से प्राप्त हो , उस प्रकार से जिनधर्म में यत्न करना चाहिए ।।104।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 102. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक