75.Falvruddhi Parshwanath

75.Falvruddhi Parshwanath

75.Falvruddhi Parshwanath

Mulnayak: Nearly 105 cms. high, black – coloured idol of Bhagwan Falvruddhi Parsvanath in the Padmasana posture. There is an umbrella of 7 hoods over the head of the idol. This idol is made of milk and sand.

 

Tirth: It is in the village of Falodi near Medata Road.

 

Mulnayak: This is a very famous and miraculous temple of Falodi. Paras Shreshti of Falodi saw a heap of Amlan Pushp (Amarnath) outside the village. A divine fragrance was coming from the flowers and he was amazed. He immediately went to Falodi and told Acharya Shri Vadidevsuriji about this incident. They immediately came to that place along with the villagers. When the earth below the flowers  was dug, a beautiful  and alluring idol of Bhagwan Parshvanath appeared. The idol was taken with great  pomp and glory to the village. The presiding deity told Paras Shresthi to build a temple for Bhagwan Parshvanath but he did not have sufficient funds. The deity helped him by  converting the rice Swastik which he made in the temple into golden ones. With this gold, the construction work of the temple was started. The conversion of rice grains into gold was stopped when people came to know about this miracle and the construction work was stopped. The Jain sangh then completed the construction of the temple and the idol of Bhagwan Parshvanath was ceremonially installed in V.S. 1204 by Shri Munichandrasuriji. During his invasion, Shahbuddin and his army began to damage the temple. The Sultan fell ill, and began to suffer pains. Therefore, he ordered his army to leave this temple without doing any more damage. In V.S.1552, Hemraj, son of Sanghpati Shivraj, renovated this temple. The presiding deity here is very miraculous   A fair is held here every year on the tenth day of the dark half of the month of Ashwin and of the dark half of the  month of Paush. Miracles keep happening even today.
Other Temples: There is another temple and Dadawadi near this temple. There are 14 temples in Medata city.

 

Works of art and Sculpture: In “Vividh Tirth Kalp”, it is mentioned that if one worships the Lord in this Tirth, one gets the benefit of pilgrimaging the 64 tirths. This is a very ancient and miraculous idol and fulfills the wishes of the devotees who worship with full reverence. It is, therefore, called Falvruddhi Parshvanath. The wall paintings of Bhagwan Mahaveer and other paintings are painted in an artistic style.

 

Guidelines: The nearest railway station of Medata Road is only half a mile away from the tirth.  Medata city is at a distance of 15 kms. Bus service and other vehicles are easily available. Dharamshala and Bhojanshala facilities are available here.

falvruddhi-parshwanath-tirth

Scripture: A mention of this temple has been made in “Puratan Praband Sangraha”, in “Vivid Tirth Kalp”, in “Tirthmala”, in “Updesh Saptika”, in “Praband Panchshati”, in “Shri Falvruddhi Parshvanath Stavan”, in “Updesh Tarangini”, in “Shri Parshvanath Naammala”, in “Chaityaparipati” etc.  An idol of Falvruddhi Parshvanath is there in Kalikund Parshvanath temple in Santacruz, Mumbai and in Jiravala Tirth.

Trust: Shri Falvruddhi Parshvanath Tirth Trust,  Post: Medata Road,  Tehsil: Medata city,  District: Nagour: 341511, State : Rajasthan, India.  Phone: 01591 – 276226, 01591 – 276426.


श्री फल्वृद्धि पार्श्वनाथ

श्री फलवृद्धि पार्श्वनाथ – मेडता रोड
यह तीर्थ विक्रम की बारहवी शताब्दी में पुन: प्रकाश में आया माना जाता है| दूध व बालू से मिर्मित, चमत्कारी घटनाओं के साथ भूगर्भ से प्रकट इस प्रभु-प्रतिमा की प्रतिष्ठा वि.सं. ११८१ में आचर्य श्री धर्मघोषसूरीश्वर्जी के सुहास्ते चतुर्विध संघ के सम्मुख अत्यंत हर्षोल्लास पूर्वक सुसंपन्न हुई थी, ऐसा उल्लेख है| वि.सं. १६५५३ में इस मंदिर में अन्य जिन प्रतिमाएं प्रतिष्टित होने का उल्लेख है| वि.सं. १९३५ व सं. १९९२ में भी इस मंदिर के जिणोरद्वार हुए थे|
श्री जिनप्रभसूरीश्वर्जी ने चौदहवी शताब्दी में रचित “विविध तीर्थ कल्प” में इस तीर्थ के दर्शन करने से अड़सठ तीर्थो के दर्शन का लाभ होना बताया है| इस वर्णन का कुछ सहस्य अवश्यमेव होगा| इस कल्प में यह भी बाते है की, यहाँ के गोपालक श्री धांधल क्षेष्टि की एक गाय दूध नहीं देती थी |गौ-चरवाहे द्वारा उसकी जांच करने पर पता लगा की एक टिम्बे के पास पेड़ के नीचे गाय के स्तनों से दूध हमेशा झर जाता है| यह वृतांत सेठ से कहा| सेठ को स्वप्न में अधिष्ठायकदेव ने बताया की जहाँ दूध झरता है, वहाँ देवधिदेव श्री पार्श्वनाथ प्रभु की सप्तफणी प्रतिमा है| प्रयत्न करने पर वहां से प्रकट होगी, जिसे मंदिर का निर्माण करवाकर प्रतिष्टित करवाना| धांधल सेठ ने यह वृतान्त अपने इष्ट मित्र श्री शिवंकर से कहा| दोनों मित्र अत्यंत प्रसन्न हुए| स्वप्नानुसार यह भव्य चमत्कारिक प्रतिमा प्राप्त हुई| मंदिर-निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया गया| अर्थाभाव से कार्य को कुछ रोकना पड़ा| दोनों मित्र व्याकुल थे|
अधिष्ठायकदेव ने फिर स्वप्न में प्रकट होकर कहा की हमेशा प्रात: प्रभु के सम्मुख स्वर्ण मुद्राओं से स्वस्तिक किया हुआ मिलेगा, उससे कार्य-पूर्ति कर लेना |लेकिन यह बात किसी को मालुम नहीं पड़ने देना| पुनः मंदिर-निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ| पांच मंडप भी बनकर तैयार हो गए| एक दिन सेठ के लड़के ने यह अनोखा दृश्य छिपकर देख लिया| उस दिन से स्वर्ण मुद्राएँ मिलनी बंध हो गयी, जिससे मंदिर कुछ अपूर्ण अवस्था में रह गया|
वि.सं. ११९१ में जब आचार्य श्री धर्मघोषसूरीश्वर्जी पधारे, तब श्रीसंघ को उपदेश देकर कार्य को पूर्ण करवाकर प्रतिष्ठा करवाई| सुलतान शाहबुद्धीन ने आक्रमण के समय इस मंदिर पर प्रहार किया, जिससे प्रतिमा भी कुछ खंडित हो गई| परन्तु दैविक शक्ति से वह बीमार पड़कर बहुत ही दुःख: का अनुभव करने लगा| इस मंदिर को अखंडित रखने का अपनी सेना को आदेश दिया| इसलिए मंदिर व प्रतिमा को ज्यादा क्षति नहीं पहुँची व यही प्रतिमा पुन: स्थापित हो गयी| यहाँ के अधिष्ठायक देव जागरुक व चमत्कारी है| प्रतिवर्ष आसोज कृष्ण दशमी व पौष कृष्ण दशमी को मेले भरते है| उन पावन अवसरों पर जगह-जगह से हजारो नर-नारी आकर प्रभु भक्ति का लाभ लेते है| चमत्कारिक घटनाएँ अभी भी घटने से वृतांत सुनने मिलते है|

Related Articles