82.Nakoda Parshwanath

82.Nakoda Parshwanath

82.Nakoda Parshwanath

  1. Shri Nakoda Parshvanath
    Mulnayak: Nearly 58 cms. high black – colored idol of Bhagawan Parshvanath in the Padmasana posture.

    Tirth: It is among the hills in the distant forest at a distance of 13 kilometers from Balotara.

    Historicity:A King’s two sons by the name of Viramdat and Nakorsen built two cities at a distance of 10 miles. They named them Virampur and Nakornagar accordingly.These kings built temples in their cities. In Virampur an idol of Shri Chandraprabhu swami was installed and in Nakorsen an idol of Shri Suparsvanath swami was installed in the third century of the Vikram era and the idol was installed by His Holiness Acharya Sthulibhadraswami. In course of time, this temple was renovated many times. When Alamshsh invaded this place in the year 1280 of the Vikram era, the sangha kept these120 idols hidden in the cellar in the Kalidrah village for protection. This temple was again renovated in the fifteenth century. 120 idols were brought here from Kalidrah and the beautiful and miraculous idol of Bhagwan Parshvanath was installed here as Mulnayak in the year 1429 of the Vikram era and today it is there. As the idol was from Nakornagar,it was named as”Nakoda Parshvanath”.The idol  of the manifest and real presiding god Bhairavji was installed here by Acharya Kirtiratnasurishvarji. Bhairavji is very miraculous. He protects the tirth and fulfills the wishes of the worshippers. His miracles are known all over the world. Thousands, of Pilgrims, come here. At present there is no population besides the temples. A fair is held here every year on the tenth day of the dark half of the month of Paush, the janmakalyanak (birthday) of Bhagawan Parshvanath.

     

    Nakoda Jain Tirth

    Nakoda Jain Tirth

    Other Temples: There are also the temples of Bhagawan Shantinath and the temple of Bhagawan Adishwar which is believed to be very ancient and belonging to the seventeenth century.

     

    Works of art and Sculpture: The idols of the period from the twelfth to the sixteenth century are displayed here. The natural scene of this lonely place among the hills in the forest is very beautiful, peaceful and fascinating. The idol of Bhagawan Parshvanath is very expressive. Among tirths in Rajsthan, this tirth has a special significance.

     

    Guidelines: Balotara, the nearest railway station, is at a distance of 13 kilometers from this temple. Bus service, and private vehicles from every tirth in Rajasthan to this place are available. In the compound of the temple there is a dharmashala with excellent lodging facilities. An ayambilshala, a bhojanshala, an upashraya, a gynanabhandar (wealth of knowledge – library),  and a panjarapol are also there.

    Scripture:A mention of this temple has been made in “Tirthmala”, “Shri Sankheswar Parshvanath Chand”, etc. There is an idol of Shri Nakoda Parshvanath in “Jiravala Tirth”, in”Kalikund Parshvanath temple” in Santacruz, Mumbai.

    Trust: Shri Jain Shwetambar Nakoda Parshvanath Tirth, Post: Mevanagar, Balotara: 344 025  District: Barmer. Rajasthan. India. Phone: 02988-40761,  02988-40005,  02988-40096. Fax: 02988-40762


    श्री नाकोडा पार्श्वनाथ

    श्री नाकोडा पार्श्वनाथ – श्री नाकोडा तीर्थ
    कहा जाता है की पूर्व तीसरी शताब्दी में श्री वीरसेन व नाकोर्सें भागयवान बंधुओ ने अपने नाम पर बीस मील के अन्तर में वीरमपुर व नाकोरनगर ग़ाव बसाए थे | श्री वीरसेन ने वीरमपुर में श्री चन्द्रप्रभ भगवान का व नाकोर्नगर में श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का मंदिर निर्मित करवाकर परमपूजय आचार्य श्री स्थूलिभ्द्रस्वामीजी के सुहास्ते प्रतिष्ठा संपन्न करवाई थी |
    वि. सं. ९०९ में वीरमपुर शहर , सुसंपन्न श्रावको के लगभग २७०० घरो की आबादी से जगमगा रहा था |उस समय शेस्ती श्री हराख्चंदजी ने प्राचीन मंदिर का जिनोर्र्द्वर करवाकर श्री महावीर भगवान के प्रतिमा की प्रतीष्टा करवाई थी |एक और मानयतानुसार यह प्रतिमा, भागयवान्सुश्रावक श्री जिनदत को श्री अधिष्टायक देव द्वारा स्वप्न में दिए संकेत के आधार पर नाकोर्नगर के निकट सीन्दरी ग़ाव के पास एक तालाब से प्रकट हुई थी |
    वि.सं. ९०९ में वीरमपुर सुसंपन्न श्रावको के लगभग २७०० घरो की आबादी से जगमगा रहा था| उस समय शेष्टि श्री हरखचंदजी ने प्राचीन मंदिर का जिणोरद्वार करवाकर श्री महावीर भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवायी थी, ऐसा उल्लेख है| वि.सं. १२२३ में पुन: जिणोरद्वार करवाने का उल्लेख मिलता है| वि.सं. १२८० में आलामशाह ने इस नगर पर भी चढ़ाई की| तब इस मंदिर को भारी श्रति पहुंची| वि. की लगभग १५वि शताब्दी के आरम्भ में इस मंदिर के नवनिर्माण का कार्य पुन: प्रारंभ किया गया| कालिद्रह में स्थित नाकोरनगर की १२० प्राचीन प्रतिमाएं यहाँ लाकर उसमे से श्री पार्श्वनाथ भगवान की इस सुन्दर चमत्कारी प्रतिमा को मुलनायक के रूप में इस नवनिर्मित मंदिर में वि.सं. १४२९ में पुन: प्रतिष्टित की गयी, जो अभी विधमान है| मूल प्रतिमा नाकोरनगर की रहने के कारण इस तीर्थ का नाम नाकोडा प्रचलित हुआ|
    सं. १५६४ में ओसवाल वन्सहज गोत्रीय सेठ जुठिल के परपौत्र सेठ सदरंग द्वारा जिणोरदवा होने का उल्लेख है| वि.सं. १६३८ में इस मंदिर के पुनरुध्वार होने का उल्लेख है| लगभग सत्रहवी शताब्दी तक यहाँ की जहोजलाली अच्छी रही| इसके बाद शेष्टि मालाशाह संकलेचा के भ्राता सही नानकजी ने यहाँ के राजकुमार का अप्रिय व्यवहार देखकर गाँव छोड़ने का निर्णय लिया| अत: जैसैलमेर का संघ निकालकर सारे जैन कुतुम्बिजनो के साथ गाँव छोडकर चले गए|
    उसके पश्चात इस गाँव की जनसंख्या दिन प्रति दिन घटने लगी| आज जैनियों का कोई घर नहीं है, लेकिन श्रीसंघ द्वारा हो रही तीर्थ की व्यवस्था उल्लेखनीय है| सत्रहवी सदी के बाद सं. १८८६५ में जिणोरद्वार होने का उल्लेख है| इसके पश्चात श्री समय-समय पर आवश्यक जिणोरद्वार हुए|
    परमपूज्य श्री स्थूलीभद्रस्वामीजी द्वारा प्रतिष्टित इस तीर्थ की महान विशेषता है| पार्श्वप्रभु की प्राचीन प्रतिमा सुन्दर व अति ही चमत्कारी है| यहाँ मंदिर के अतिरिक्त कोई घर नहीं है| परन्तु यात्रियों का निरंतर आवगमन रहने के कारण यह स्थल नगरी सा प्रतीत होता है| प्रतिवर्ष श्री पार्श्वप्रभु के जन्मकल्याणक दिवस पौष कृष्ण दशमी को विरत मेले का आयोजन होता है|

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