Vardhaman Shakrastav Stotra | श्री वर्धमान-शक्रस्तव

Vardhaman Shakrastav Stotra | श्री वर्धमान-शक्रस्तव

Vardhaman Shakrastav Stotra | श्री वर्धमान-शक्रस्तव

पूज्य आचार्य श्री विजय सिद्धसेन-दिवाकर सूरि विरचित

श्री वर्धमान-शक्रस्तव (Vardhaman Shakrastav)

कृतज्ञताके छे वाक्यो

जयतु जयतु नित्यं श्री वीतराग ।।

जयतु जयतु नित्यं श्री वर्धमान शक्रस्तव।। जयतु जयतु नित्यं श्री शकेन्द्र महाराजा।। जयतु जयतु नित्यं श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरी।। जयतु जयतु नित्यं श्री श्रुतवाणी॥

ॐ नमोऽर्हते १ भगवते, २ परमात्मने, ३ परम-ज्योतिषे, ४ परम-परमेष्ठिने, ५ परम-वेधसे, ६ परम-योगिने, ७ परमेश्वराय, ८ तमसः परस्तात्, ९ सदोदिता दित्यवर्णाय, १० समूलोन्मूलिता-नादि-सकल-क्लेशाय ॥१॥

ॐ नमोऽर्हते १ भू-भुवः-स्वस्त्रयी-नाथ-मौलि-मन्दार-मालार्चित-क्रमाय, २ सकल-पुरुषार्थ-योनि-निरवद्य-विद्या-प्रवर्तनैक- वीराय, ३. नमःस्वस्ति-स्वधा स्वाहा-वषडथै-कान्त-शान्त-मूर्तये ४ भवद्-भावि-भूत-भावा-वभासिने . ५ काल-पाश-नाशिने, ६ सत्व-रजस्तमो-गुणातीताय ७ अनन्त-गुणाय, ८ वाड्-मनो गोचर-चरित्राय, ९ पवित्राय, १० करण-कारणाय, ११ तरण-तारणाय, १२ सात्त्विक-दैवताय, १३ तात्त्विक-जीविताय, १४ निर्ग्रन्थ-परम-ब्रह्म-हृदयाय, १५ योगीन्द्र-प्राणनाथाय, १६ त्रिभुवन-भव्य-कुल-नित्योत्सवाय, १७ विज्ञानानन्द-परब्रहै-कात्म्य-सात्म्य-समाधये,’ १८ हरि-हर-हिरण्य-गर्भादि-देवता-परिकलित -स्वरूपाय, १९ सम्यग्-श्रद्धेयाय, २० सम्यग्ध्येयाय, २९ सम्यक्-शरण्याय, २२ सुसमाहित-सम्यक्-स्पृहणीयाय ॥ २ ॥

ॐ नमोऽर्हते १ भगवते, २ आदिकराय, ३ तीर्थकराय, ४ स्वयं-सम्बुद्धाय, ५ पुरुषोत्तमाय, ६ पुरुष-सिंहाय, ७ पुरुष-वर-पुण्डरीकाय, ८ पुरुष-वर गन्धहस्तिने, ९ लोकोत्तमाय, १० लोकनाथाय, ११ लोक-हिताथ, १२ लोक-प्रदीपाय, १३ लोक-प्रद्योतकारिणे, १४ अभयदाय, १५ दृष्टिदाय, १६ मुक्तिदाय, १७ मार्गदाय, १८ बोधिदाय, १९ जीवदाय,२० शरणदाय, २१ धर्मदाय, २२ धर्म-देशकाय, २३ धर्म-नायकाय, २४ धर्म-सारथये, २५ धर्म-वर-चातुरन्त चक्रवर्तिने, २५ व्यावृत्तच्छाद्म ने २७ अप्रतिहत-सम्यग्ज्ञान-दर्शन-सद्मेन ॥३॥

ॐ नमोऽर्हते १ जिनाय, २ जापकाय, ३ तीर्णाय, ४ तारकाय, ५ बुद्धाय, ६ बोधकाय, ७ मुक्ताय, ८ मोचकाय, ९ त्रिकालविदे, १० पारङगताय. ११ कर्माष्टक-निषूदनाय​, १२९ अधीश्वराय, १३ शम्भवे. १४ जगत्प्रभवे, १५ स्वयम्भुवे, १६ जिनेश्वराय, १७ स्याद्वाद-वादिने, १८ सार्वाय, १९ सर्वज्ञाय, २० सर्व दशिॅने, २१ सर्व-तीर्थो-पनिषदे, २२ सर्व-पाखण्ड(पाषण्ड)-मोचिने, २३ सर्व-यज्ञ-फलात्मने, २४ सर्वज्ञ-कलात्मने, २५ सर्व-योग-रहस्याय, २६ केवलिने, २७ देवाधिदेवाय, २८ वीतरागाय ॥ ४ ॥

ॐ नमोऽर्हते १ परमात्मने, २ परमाप्ताय, ३ परम-कारुणिकाय, ४ सुगताय, ५ तथागताय, ६ महा-हंसाय, ७ हंस-राजाय, ८ महा-सत्त्वाय, ९ महा-शिवाय, १० महा-बोधाय, ११ महा-मैत्राय​, १२ सुनिश्चिताय, १३ विगत-द्वन्द्वाय १४ गुणाब्धये १५ लोकनाथाय १६ जितमार- बलाय ॥ 5॥

ॐ नमोऽर्हते १ सनातनाय, २ उत्तम-श्लोकाय​, ३ मुकुन्दाय, ४ गोविन्दाय, ५ विष्णवे, ६ जिष्णवे, ७ अनन्ताय, ८ अच्युताय, ९ श्रीपतये, १० विश्वरूपाय, ११ हृषिकेशाय. १२ जगन्नाथाय. १३ भू-र्भुवः स्वः – समुत्ताराय, १४ मानंजराय , १५ कालंजराय. १६ ध्रुवाय , १७ अजाय, १८ अजेयाय, १९ अजराय, २० अचलाय, २१ अव्ययाय, २२ विभवे, २३ अचिन्त्याय, २४ असंख्येयाय, २५ आदि- संख्याय, २६ आदि-केशवाय, २७ आदि-शिवाय, २८ महा-ब्रह्मणे, २९ परम-शिवाय, ३० एका-नेका-नन्त-स्वरूपिणे, ३१ भावा-भाव-विवर्जिताय, ३२ अस्ति-नास्ति-द्वयातीताय, ३३ पूण्य-पाप-विरहिताय, ३४ सुख-दुख- विविक्ताय, ३५ व्यक्ता-व्यक्त-स्वरूपाय, ३६ अनादि-मध्य-निधनाय, ३७ नमोस्तु, ३८ मुक्तिश्वराय, ३९ मुक्ति-स्वरूपाय॥ 6॥

ॐ नमोऽर्हते १ निरातङ्काय, २ नि:सङ्गाय, ३ नि:शङ्कर, ४ निर्मलाय. ५ निर्द्वन्द्वाय, ६ निस्तरङ्गाय. ७ निरुर्मये, ८ निरामयाय, ९ निष्कलङ्काय, १० परम-दैवताय, ११ सदा-शिवाय, १२ महा-देवाय, १३ शङ्कराय, १४ महेश्वराय, १५ महा-व्रतिने, १६ महा-योगिने, १७ महात्मने, १८ पंचमुखाय, १९ मृत्युंजयाय, २० अष्टमुर्तये, २१ भूतनाथाय, २२ जगदानन्ददाय, २३ जगत्पितामहाय, २४ जगद्वेवाधिदेवाय, २५ जगदीश्वराय, २६ जगदादिकन्दाय, २७ जगद् भास्वते, २८ जगत्कर्म-साक्षिणे, २९ जगच्चक्षुषे, ३० त्रयीतनवे, ३१ अमृतकराय, ३२ शीतकराय, ३३ ज्योतिष्चक्र-चक्रिणे, ३४ महा-ज्योती-द्योतिताय, ३५ महातम: पारे सुप्रतिष्ठिताय, ३६ स्वयं कत्रे, ३७ स्वयं-हत्रे, ३८ स्वयं-पालकाय, ३९ आत्मेश्वराय, ४० नमो-विश्वात्मने ॥ ७॥

ॐ नमोऽर्हते । सर्वदेवमयाय, २ सर्वध्यानमयाय, ३ सर्वज्ञानमयाय, ४ सर्व-तेजोमयाय, ५ सर्वमंत्रमयाय, ६ सर्वरहस्यमयाय, ७ सर्व-भावाभाव-जीवा जीवेश्वराय, ८ अरहस्य-रहस्याय, ९ अस्पृह-स्पृहणीयाय, १० अचिन्त्य-चिन्तनीयाय, ११ अकाम-कामधेनवे, १२९ असङ्-कल्पित-कल्पद्रुमाय, १३ अचिन्त्य-चिन्तामणये, १४ चतुर्दश-राज्ज्वात्मक-जीवलोक-चूडामणये, १५ चतुरशीति-लक्ष-जीवयोनि-प्राणिनाथाय, १६ पुरुषार्थ-नाथाय, १७ परमार्थ नाथाय, १८ अनाथ-नाथाय, १९ जीवनाथाय, २० देव-दानव-मानव/ सिद्धसेनाधिनाथाय ॥ ८ ॥

ॐ नमोऽर्हते । निरञ्जनाय, २ अनन्त-कल्याण-निकेतन-कीर्तनाय, ३ सुगृहीत-नामधेयाय, महिमा-मयाय ४ धीरोदात्त-धीरोद्धत-धीरशान्त-धीरललित पुरुषोत्तम-पुण्यश्लोक-शत-सहस्त्र​-लक्ष-कोटि-वन्दित-पादारविन्दाय, ५ सर्व-गताय ॥ ९ ॥

ॐ नमोऽर्हते १ सर्व-समर्थाय, २ सर्व-प्रदाय, ३ सर्व-हिताय, ४ सर्वाधि-नाथाय, ५ कस्मैचन-क्षेत्राय, ६ पात्राय, ७ तीर्थाय, ८ पावनाय, ९ पवित्राय, १० अनुत्तराय, १९ उत्तराय, १२ योगाचार्याय, १३ संप्रक्षालनाय, १४ प्रवराय, १५ आग्रेयाय, १६ वाचस्पतये, १७ माङ्गल्याय, १८ सर्वात्मनीनाय, १९ सर्वार्थाय, २० अमृताय, २१ सदोदिताय, २२ ब्रह्मचारिणे, २३ तायिने, २४ दक्षिणीयाय, २५ निर्विकाराय, २६ व्र्षभ-नाराच-मूर्तये, २७ तत्त्व -दर्शिने, २८ पार-दर्शिने, २९ परम-दर्शिने, ३० निरुपम-ज्ञान-जल-वीर्य-तेज-शक्तायैश्वयॅ-मयाय, ३१ आदि-पुरुषाय, ३२ आदि-परमेष्ठिने, ३३ आदि-महेशाय, ३४ महा ज्योतिः सत्त्वाय, ३५ महार्चि-धनेश्वराय, ३६ महा-मोह-संहारिणे, ३७ महा-सत्त्वाय, ३८ महाज्ञा-महेन्द्राय, ३९ महा-लयाय, ४० महा- शान्ताय, ४१ महा योगीन्द्राय, ४२ अयोगिने ४३ महा-महीयसे, ४४ महा-हंसाय, ४५ हंस-राजाय, ४६ महा-सिद्धाय, ४७ शिव-मचल-मरुज-मनन्त-मक्षय-मव्याबाध- म​पुनरावृत्ति-महानन्द-महोदयं, सर्वदुःख-क्षयं, कैवल्य ममृतं, निर्वाण-मक्षरं, परब्रह्म- निःश्रेयस-मपुनर्भवं सिद्धिगति-नामधेयं स्थानं संप्राप्तवते, ४८ चराचर अवते, ४९ नमोऽस्तु श्री महावीराय, ५० त्रिजगत्स्वामिने ५१ श्री वर्धमानाय ॥ १० ॥

ॐ नमोऽर्हते १ केवलिने, २ परमयोगिने, ३ ( भक्तिमार्ग-योगिने ), ४ विशाल-शासनाय, ५ सर्व-लब्धि-संपन्नाय. ६ निर्विकल्पाय, ७ कल्पनातिताय,८ कला-कलाप-कलिताय, ९ विस्फुर-दुरु-शुक्ल-ध्यानाग्रि-नि र्दग्ध-कर्मबीजाय, १० प्राप्तान्त-चतुष्ट्याय, ११ सौम्याय, १२ शान्ताय, १३ मङ्गल वरदाय, १४ अष्टादश-दोष-रहिताय, १५ संस्कृत-विश्व-समीहिताय स्वाहा

                                                                                    ॐ ह्रीं श्रीं अर्हम नमः || 11||

                                                                (उपरी मंत्र की ।। माला गिननी/ नहीं तो ११ बार मंत्र आवश्य गिने)

                                                                                  उसके बाद नीचे के ५ श्लोक​ बोले।

                                                                       लोकोत्तमो निस्प्रतिमस्त्वमेव, त्वं शाश्वतं मंगलमप्यधीश

                                                                       त्वामेडमर्हन् !शरणं प्रपधे, सिद्धर्षि सद्धर्ममयस्त्वमेवा॥१॥

                                                                       त्वं मे माता पिता नेता, देवो धर्मो गुरुः परः

                                                                       प्राणा:स्वर्गोडपवर्गश्च सत्त्वं तत्त्वं गतिर्मतिः।।२।।

                                                                       जिनो दाता जिनो भोक्ता, जिनो सर्वमिदं जगत्

                                                                       जिनो जयति सर्वत्र, यो जिन: सोडहमेव च।। ३॥

                                                                       यत्किचित् कुर्महे देव, सदा सुकृत- दुष्कतम्

                                                                       तन्मे निजपदा स्थस्य,हूं क्ष: क्षपय त्वं जिनः॥४॥

                                                                       गुह्याति गुह्य गोप्ता त्वं गृहाणा स्मत्कृतं जपम्

                                                                       सिद्धिःश्रयती मां येन,त्वत्प्रसादात्वयि स्थितम्।।५।।

                                                                           (इति श्री वर्धमान जिनना मंत्र-स्तोत्रं समाप्तम्)

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