Categories : Jain Stotra, JAINISM 7. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक सा नत्थि कला तं नत्थि , ओसहं तं नत्थि किं पि विन्नाणं । जेण घरिज्जइ काया , खज्जंती कालसप्पेण ॥७ ॥ : अर्थ : ऐसी कोई कला नहीं है , ऐसी कोई औषधि नहीं है , ऐसा कोई विज्ञान नहीं है , जिसके द्वारा काल रुपी सर्प के द्वारा खाई जाती हुई इस काया को बचाया जा सके ।।7 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक