78. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

78. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

78. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

संसारो दुहहेऊ ,

दुक्खफलो दुस्सहदुक्खसरूवो य ।

न चयंति तं पि जीवा ,

अइबद्धा नेहनिअलेहिं ॥७८ ।।

: अर्थ :

जो दुःख का कारण है , दुःख का फल है और जो अत्यन्त दुःसह ऐसे दुखोंवाला है , ऐसे संसार को , स्नेह की साँकल से बँधे हुए जीव छोड़ते नहीं हैं ।। 78 ॥

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