Categories : Jain Stotra, JAINISM 82. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक वासासु रणमज्झे , गिरिनिज्झरणोदगेहि वुज्झंतो । सीआनिलडज्झविओ , मओसि तिरियत्तणे बहुसो ॥८२ ॥ : अर्थ : तिर्यंच के भव में जङ्गल में वर्षा ऋतु में झरने के जल के प्रवाह में बहते हुए तथा ठण्डे पवन से संतप्त होकर अनेक बार बेमौत मरा है ।। 82 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक