Categories : Jain Stotra, JAINISM 83. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक एवं तिरियभवेसु , कीसंतो दुक्खसयसहस्सेहिं । वसिओ अणंतखुत्तो , जीवो भीसणभवारण्णे ॥८३ ॥ : अर्थ : इस प्रकार इस संसार रूपी जङ्गल में हजारों लाखों प्रकार के दुःखों से पीड़ित होकर तियॅच के भव में अनन्त बार रहा है ।। 83 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक