Categories : Jain Stotra, JAINISM 96. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक जह दिट्ठीसंजोगो , न होइ जच्चंधयाण जीवाणं । तह जिणमयसंजोगो , न होइ मिच्छंधजीवाणं ॥९६ ॥ : अर्थ : : अर्थ : जन्म से अन्धे जीव को जिस प्रकार दृष्टि का संयोग नहीं होता है , उसी प्रकार मिथ्यात्व से अन्धे बने हुए जीव को भी जिनमत का संयोग नहीं होता है ।। 96।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक