Categories : Jain Stotra, JAINISM 77. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक कुणसि ममत्तं धण सयण विहद पमुहेसुष्णंत दुक्खेसु । सिढिलेसि आयरं पुण , अणंत सुक्खंमि मुक्खंमि ॥७ ७॥ : अर्थ : अनंत दु : ख के कारणरुप धन , स्वजन और वैभव आदि में तू ममता करता है और अनन्त सुखस्वरुप मोक्ष में अपने आदरभाव को शिथिल करता है ।। 77 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक