77. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

77. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

77. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

कुणसि ममत्तं धण सयण

विहद पमुहेसुष्णंत दुक्खेसु ।

सिढिलेसि आयरं पुण ,

अणंत सुक्खंमि मुक्खंमि ॥७ ७॥

: अर्थ :

अनंत दु : ख के कारणरुप धन , स्वजन और वैभव आदि में तू ममता करता है और अनन्त सुखस्वरुप मोक्ष में अपने आदरभाव को शिथिल करता है ।। 77 ।।

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