86. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

86. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

86. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

पिय माय सयण रहिओ ,

दुरंत वाहिहिं पीडिओ बहुसो ।

मणुयभवे निस्सारे ,

विलविओ किं न तं सरसि ॥८६ ||

: अर्थ :

साररहित ऐसे मानवभव में माता – पिता तथा स्वजनरहित भयङ्कर व्याधि से अनेक बार पीड़ित हुआ तू विलाप करता था , उसे तू क्यों याद नहीं करता है ? ।।86।।

Related Articles

× CLICK HERE TO REGISTER