Categories : Jain Stotra, JAINISM 86. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक पिय माय सयण रहिओ , दुरंत वाहिहिं पीडिओ बहुसो । मणुयभवे निस्सारे , विलविओ किं न तं सरसि ॥८६ || : अर्थ : साररहित ऐसे मानवभव में माता – पिता तथा स्वजनरहित भयङ्कर व्याधि से अनेक बार पीड़ित हुआ तू विलाप करता था , उसे तू क्यों याद नहीं करता है ? ।।86।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक