88. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

88. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

88. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

विधिज्जंता असयं जम्म –

जरा – मरण – तिक्खकुंतेहिं ।

दुहमणुहवंति घोरं ,

संसारे संसरंत जिया ॥८८ ॥

: अर्थ :

इस संसार में भटकनेवाले जीव जन्म , जरा और मृत्युरुपी तीक्ष्ण भालों से बिंधाते हुए भयङ्कर दुःखों का अनुभव करते हैं ।। 88 ॥

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