Categories : Jain Stotra, JAINISM 88. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक विधिज्जंता असयं जम्म – जरा – मरण – तिक्खकुंतेहिं । दुहमणुहवंति घोरं , संसारे संसरंत जिया ॥८८ ॥ : अर्थ : इस संसार में भटकनेवाले जीव जन्म , जरा और मृत्युरुपी तीक्ष्ण भालों से बिंधाते हुए भयङ्कर दुःखों का अनुभव करते हैं ।। 88 ॥ Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक