93. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

93. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

93. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

दुलहो पुण जिणधम्मो ,

तुमं पमायायरो सुहेसी य ।

दुसहं च नरयदुक्खं ,

कह होहिसि तं न याणामो ॥९३ ॥

: अर्थ :

जिनधर्म की प्राप्ति दुर्लभ है । तू प्रमाद में आदरवाला और सुख का अभिलाषी है । नरक का दुःख असह्य है । तेरा क्या होगा , यह हम नहीं जानते हैं।। 93 ।।

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