Categories : Jain Stotra, JAINISM 95. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक जह चिंतामणिरयणं , सुलहं न होइ तुच्छ विहवाणं । गुण विहव वज्जियाणं , जियाण तह धम्मरयणं पि ॥१५ ॥ : अर्थ : जिस प्रकार तुच्छ वैभववाले गरीब को चिन्तामणि रत्न सुलभ नहीं होता है , उसी प्रकार गुणवैभव से दरिद्र व्यक्ति को भी धर्मरूपी रत्न की प्राप्ति नहीं होती है ।।95 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक