95. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

95. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

95. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

जह चिंतामणिरयणं ,

सुलहं न होइ तुच्छ विहवाणं ।

गुण विहव वज्जियाणं ,

जियाण तह धम्मरयणं पि ॥१५ ॥

: अर्थ :

जिस प्रकार तुच्छ वैभववाले गरीब को चिन्तामणि रत्न सुलभ नहीं होता है , उसी प्रकार गुणवैभव से दरिद्र व्यक्ति को भी धर्मरूपी रत्न की प्राप्ति नहीं होती है ।।95 ।।

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