98. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

98. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

98. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक

मिच्छे अणंतदोसा ,

पयडा दीसंति न वि य गुणलेसो ।

तह वि य तं चेव जिया ,

ही मोहंधा निसेवंति ॥९८ ॥

: अर्थ :

मिथ्यात्व में प्रगट अनंत दोष दिखाई देते हैं और उसमें गुण का लेश भी नहीं है , फिर भी आश्चर्य है कि मोह से अन्धे बने हुए जीव उसी मिथ्यात्व का सेवन करते हैं ।। 98 ।।

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