Categories : Jain Stotra, JAINISM 98. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक मिच्छे अणंतदोसा , पयडा दीसंति न वि य गुणलेसो । तह वि य तं चेव जिया , ही मोहंधा निसेवंति ॥९८ ॥ : अर्थ : मिथ्यात्व में प्रगट अनंत दोष दिखाई देते हैं और उसमें गुण का लेश भी नहीं है , फिर भी आश्चर्य है कि मोह से अन्धे बने हुए जीव उसी मिथ्यात्व का सेवन करते हैं ।। 98 ।। Related Articles 3. Shree Uvvasaggaharam Stotram | श्रीउवसग्गहरं स्तोत्रम् 2. Namskar Mantrastotram | नमस्कार मन्त्रस्तोत्रम 1. Aatma Raksha Stotra | आत्मरक्षास्तोत्रम् 104. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक 103. Vairagya Shatak | वैराग्य शतक