उपाध्याय पद के 25 गुणों
मुनि समुदाय में सबसे अधिक ज्ञानी, अन्य मुनियों को पढ़ाने वाले उपाध्याय भगवंत” होते हैं।
ग्यारह अंग और चौदह पूर्व का अध्यापन इन पच्चीस गुणों से युक्त उपाध्याय भगवान्, अंग पूर्वादि शास्त्रों के पढ़ने वाले और मुनि समुदाय को पढ़ाने वाले होते हैं। सभी परमेष्ठि भगवंत के गुण अपने जीवन की साधना के स्वरूप होता है उपाध्याय भगवंत सदा ज्ञान में प्रवृत्त रहते हैं, एक महान लक्ष्य पढना और पढ़ाना जिसके कारण उनके गुणों भी ज्ञान आगम ग्रंथ है। उपाध्याय पद सर्वश्रेष्ठ महानता का सूचक एवम् युवराज के समान माना गया है। 11 अंग और 14 – पूर्व का ज्ञान रूप उपाध्याय परमेष्ठी के 25 गुण हैं।
ग्यारह अंग
1) आचारांग 2 ) सूत्रकृतांग, 3 ) स्थानांग, 4 ) समवायांग, 5) भगवती 6 ) ज्ञाताधर्मकथांग 7) उपासकदशांग, 8 ) अंतकृतदशांग, 9 ) अनुत्तरोपपात्तिक, 10 ) प्रश्न व्याकरण, 11 ) विपाक सूत्र यह ग्यारह अंग शास्त्र हैं।
चौदह पूर्व
1 ) उत्पादपूर्व 2 ) अग्रायणी पूर्व उ ) वीर्य प्रवाद पूर्व 4 ) आस्ति प्रवाद पूर्व 5 ) ज्ञान प्रवाद पूर्व 6) सत्य प्रवाद पूर्व 7 ) आत्म प्रवाद पूर्व 8) कर्म प्रवाद पूर्व 9 ) प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व 10) विद्या प्रवाद पूर्व 11 ) कल्याण पूर्व 12 ) प्राणवायु पूर्व 13 ) क्रिया विशाल पूर्व 14 ) लोक बिन्दुसार पूर्वयह चौदह पूर्व शास्त्र हैं। इनका ज्ञान होना, इन्हें पढ़ना पढना सो उपाध्याय भगवन के गुण हैं! उपाध्याय यशोविजयजी महाराज, उपाध्याय विनय विजयजी महाराज आदि के जीवन स्पर्शना से आदर्श महापुरुष के ज्ञान का परिचय होता है, जिनके जीवन में ज्ञान प्रेम हो वह यह पद के सर्वश्रेष्ठ अधिकारी है।