11.Shamla Parshwanath

11.Shamla Parshwanath

11.Shamla Parshwanath

  1. Shamla Parshwanath

Shamlajini Pole, Shamlaji no Khancho

Madangopal ni Haveli, Ahemdabad-380001


Mulnayak: Nearly 35 cms. high black – coloured idol of Shri Shyamala Parshvanath Bhagwan in
the Padmasana posture. There is an umbrella of 7 hoods over the head of the idol.
Tirth: It is in Shyamalaji ni Pole in the city of Ahmedabad.
Historicity: This is an ancient temple belonging to the 17th century. It was built by Sanghvi Somji
and his brother Shiva, the descendants of Minister Vastupal, in V.S.1656. The wood carvings in this
temple is breath-taking.The scenes of Kalyanak Mahotsavs of Thirthankaras is beautifully carved in
wood and is unique. There is no comparison for it. This temple is very famous for its extraordinary
carvings done in wood. The marble idol of Bhagwan Parshvanath in Kausagga mudra is very
impressive and beautiful. This idol of Shyamala Parshvanath is ancient, alluring and influential.
Other Temples: There are more than 400 temples in Ahmedabad and many of them are
considered as Tirths as they are ancient temples.
Guidelines: Ahmedabad is a very famous city of Gujarat. It is well connected to all cities of India
by rail, road and air. There are more than 100 Upashrayas, many Dharamshalas and Bhojanshalas
here. There are many Gyan bhandaars where many ancient books are kept. Many hand-written
manuscripts are preserved in the Upashraya of Dela in Doshiwada ki Pole and in many other
places in Ahmedabad.
Scripture: A mention of Shyamala Parshvanath is made in "365 Shri Parshvanath Naammala", in
"Shri Sankheswar Parshvanath Chaand", in "Shri Bhateva Parshvanath Stavan", in "108 Naam
Garbhit Shri Parshvanath Stavan", in "Patan Chaitya Paripati", in "Tirthmala" etc..
There are many temples of Shyamala Parshvanath in India.
1. The main temple of Shyamala Parshvanath is in Shyamalaji ni Pole in Ahmedabad. There is a
temple of Shyamala Parshvanath in Devsano pado and in Lambesar ni Pole in Ahmedabad.
2. There is a temple of Shyamala Parshvanath in Dandervada in the city of Patan. This idol was
found under the ground near Teen Darwaza in Patan. When the idol was taken in a cart, the cart
stopped in Danderwada. A temple was built here and the idol was installed in it. This amazing idol
is believed to be of the period of King Samprati. It is said that Maharaja Kumarpal used to do
Snatra Pooja along with other Shresthis in front of this Shyamala Parshvanath Bhagwan.
3. There is a temple of Shyamala Parshvanath in Jogiwada in Patan. This Parshvanath is more
popularly known as Dhingadmal Parshvanath. This idol of Parshvanath is influential, amazing and
miraculous. Many miracles have taken place here. Also In Shahvada, In Khetarvasi, In Nishal ni
Sheri in Patan.
4. SammetShikar Parshvanath is also known as Shyamala Parshvanath. There is a temple in
Madhubani also.
5. In Amalner.
6. In Rambagh in Azimganj.
7. In Brahmanvada in Borsad.
8. In Shamalaji na khacha in Kamboi.
9. In Girnar Tirth.
10. In Shamlaji ni Sheri in Radhanpur.
11. In Kothari vada in Idar.
12. In Lakhu Pole in Vadvaan.
13. In Tera Tirth in Kutch.
14. In Motu derasar in Prabhas Patan.
15. In Una.
16. In Dantarai and Sayala in Rajasthan.

17. In Ranasan near Vijapur.
18. In Lanva.
19. In Bansvaada.
20. In Sangamner in Maharashtra.
21. In Teen Batti in Mumbai.
22. In Mahimapur in Bihar.
Trust: Shri Shyamala Parshvanath Shwetambar Jain Tirth, Near Madan Gopal ki Haveli,
Shyamalaji ni Pole, Ahmedabad: 380 001. Gujarat, India. Phone: 079-22147643.


પાટણના ઢંઢેરવાડામાં મહારાજા સંપત્તિના સમયના કસોટી પથ્થરનાં શ્રી શામળા પાર્શ્વનાથજીની પ્રતિમા છે. એવું કહેવાય છે કે રાજરાજેશ્વર મહારાજા કુમારપાળ આ પ્રભુજીની સામે શ્રેષ્ઠી વરીઓની સાથે સ્નાત્ર મહોત્સવ ઉજવતા હતા.આ પ્રતિમાજી પાટણ ના ત્રણ દરવાજા પાસેની ભૂમિમાંથી પ્રગટ થયા હતા. પ્રભુજીને ગાડામાં બેસાડીને લઈ જતાં ઢંઢેરવાડા પાસે ગાડું અટકી પડ્યું અને પ્રભુજીને ઢંઢેરવાડામાં પ્રતિષ્ઠિત કરવામાં આવ્યા.પાટણના જોગીવાડામાં આવેલા શ્રી શામળા પાર્શ્વનાથજીનું જિનાલય આવેલું છે. પાર્શ્વનાથજી ને શ્રી ધીંગડમલ નામથી ઓળખવામાં આવે છે. પાર્શ્વનાથજી અત્યંત પ્રભાવક અને ચમત્કારિક છે.અમદાવાદમાં શામળાની પોળમાં 1656માં નિર્માણ થયેલું અત્યંત પ્રાચીન જિનાલય છે.


99.श्री शामला पार्श्वनाथ

श्री शामला पार्श्वनाथ – चारूप तीर्थ
इस प्रभु प्रतिमा का इतिहास अति ही प्राचीन माना जाता है| कहा जाता है गत चौबीसी में सुप्रसीध श्री आषाढ़ी श्रावक ने ३ प्रतिमाए प्रतिष्टित करवाई थी, उनमे यह भी एक है| वि. की नवमी शताब्दी में नागेन्द्र गच्छ के श्री देवचन्द्रसूरीजी द्वारा चारूप महा तीर्थ में श्री पार्श्वनाथ प्रभु के परिकर की प्रतिष्ठा करवाने का उल्लेख है| विक्रम की १३वि शताब्दी में नागौर निवासी क्षेष्टि श्री देवचन्द्र द्वारा यहाँ श्री आदिनाथ भगवान का मंदिर निर्मित करवाने का उल्लेख है| वि.सं. १३२० के लगभग क्षेष्टि श्री पेथडशाह द्वारा यहाँ श्री शांतिनाथ भगवान के मंदिर बनवाने का उल्लेख है| श्री जिनप्रभासूरीजी द्वारा विक्रम सं. १३८६ में रचित “विविध तीर्थ कल्प” में भी इस तीर्थ का उल्लेख मिलता है| विक्रम की चौदहवीशताब्दी में आचार्य श्री तिलकसुरीजी द्वारा रचित “चैत्य परिपाटी” में इस तीर्थ का उल्लेख है| इसी शताब्दी में श्री जय शेखरसूरीजी ने भी इसका उल्लेख किया है|
विक्रम की पंद्रहवी शताब्दी में श्री कीर्तिमेरुसूरीजी ने “साक्षात तीर्थ माला” में इसका उल्लेख किया है| विक्रम की सत्रहवी शताब्दी में श्री शान्ति कुशलसूरीजी ने “गोडी पार्श्वस्तवन” में इस तीर्थ का उल्लेख किया है| विक्रम की अठारहवी शताब्दी में श्री मेघविजयजी उपाध्याय ने “श्री पार्श्वनाथ नाममाला” ने व श्री शीलविजयजी ने “तीर्थ माला” में उल्लेख किया है| विक्रम की अठारहवी शताब्दी के बाद कुछ वर्षो तक यह तीर्थ अस्त व्यस्त बन गया व जैनतरों की देखभाल में रहा| विक्रम सं. १९३८ के आसपास पाटण के श्रावको ने इस तीर्थ की व्यवस्था पुन: संभाली| तत्पश्चात इस विशाल मंदिर का निर्माण करवाकर वि.सं. १९८४ ज्येष्ठ शुक्ला ५ के शुभ दिन पुन: प्रतिष्ठा करवाई|
शासन प्रभावक श्री वीराचार्य, सिद्धाचार्य नरेश के आमंत्रण पर मालवा से विहार करके पाटन पधार रहे थे| तब इस प्राचीन तीर्थ स्थल पर पाटन के नरेश ने स्वागतार्थ एक भव्य समारोह का आयोजन किया था, जो उल्लेखनीय है| श्री अषाढ़ी नाम के सुप्रसीध श्रावक ने तीन जिन प्रतिमाएं भराई थी, उनमे यह एक है| इसलिए यह तीर्थ स्थान विशेष महत्तव रखता है|


श्री शामला पार्श्वनाथ

श्री शामला पार्श्वनाथ – अहमदाबाद
अहमदाबाद शहर में शामला की पोल में श्री शामला पार्श्वनाथ प्रभु का तीर्थ सदृश भव्य जिनालय है| वि.सं. १६५६ में मंत्रीश्वर वास्तुपाल के वंशज संघवी सोमजी और उसके भाई शिव ने इस जिनालय का निर्माण कराया था| इस मंदिर का काष्ठ शिल्प बेजोड़ है|
श्यामवर्णीय यह प्रतिमाजी सात फने से युक्त १४ इंच ऊँची व १२ इंच चौड़े है| यह प्रतिमाजी अत्यंत प्राचीन व मनमोहक है|


श्री शामलिया पार्श्वनाथ – श्री सम्मेतशिखर तीर्थ

श्री शामलिया पार्श्वनाथ – श्री सम्मेतशिखर तीर्थ
वर्तमान में यह शेत्र सम्मतशिखर के नाम से जाना जाता है | वर्त्तमान चाबिसी के बीस तीर्थंकर इस पावन भूमि में तपसिया करते हुए अनेक मुनियो के साथ मोक्ष सिधारे है | यह पाहड जगतसेठ को भेट स्वरुप मिला हुआ होने पर भी जगतसेठ द्वारा दुर्ल्ष हो जाने से पाल्गंज राजाको दे दिया गाया था |ई. सं. १९०५-१९१० के दरमीयान पाल्गंज राजा को धन की आवष्यकता पड़ी| राजा ने पाहड बिक्री करने या रहन रखने का सोचा उसपर कलकता के रायबहादुर सेठ श्री बद्रिदास्जी जोहरी मुकीम एवं मुर्शिदाबाद निवासी महाराज बहदुर्सिंघ्जी दुगड़ ने राजा की यह मनोभावना जानकार अहमदाबाद के सेठ आनंदजी कलयाणजि पेढ़ी को यह पाहड खरीदने की प्रेरणा दी व सहयोग देने का आश्वाशन दिया | श्री आनंदजी कलयाणजि पेढ़ी ने खरीदने की तयारी करके प्राचीन फरमान आदि देखे सब अनुकूल पाने पर दिनांक ९-३-१९१८ को रुपये दो लाख़ बीयालिस हज़ार राजा को देकर यह पारसनाथ पाहड ख़रीदा गाया | जिस से पाहड पुण: जैन श्वेताम्बर के अधीन आया | इस काम में इन् महानुभावो का सहयोग सरहनीय है | उनकी प्रेरणा व सहयोग से ही यह काम समाप्त हो सका |
वर्तमान चौबिसी के २० थिर्थानाक्र यहां पर से मोक्ष सिधारे है |और चार थिर्थंकारो में श्री आदिनाथ भगवन अष्टापद से , श्री वासुपूजयभगवन चम्पापुरी से, श्री नेमिनाथ भगवन गिर्नार्जी से, श्री महावीर भगवन पावापुरी से मोक्ष को प्राप्त हुए |इनके अतिरिक्त अनंत मुनिगन यहां पर कटर तपसया करते हुए मोक्ष सिधारे है |
यहां की प्रतिमा का जितना वर्णन करे व कम है |यहां की प्रतिमा तोह हर तीर्थमाला में व स्तवनों आदि में जन-जन में गई जाती है |
अनेक तीर्थंकरो,मुनिगनो की तपोभूमि व निर्वान्भूमि रहने के कारण उन्होंने अपने अन्त-समय में इस पहाड़ पर रहकर धर्मोपदेश्ना देते हुए इस भूमि के कण-कण को अपने चरणकमलो से स्पर्श किया है |अंत: यहां का कण-कण महान पवित्र व पूजनीय है |इस भूमि के स्पर्श मात्र से मानव की आत्मा प्रफुलित होकर प्रभु के स्मरण में लींण हो जाती है |यहां की यात्रा मानव का संकट हरनारी व पापविनाशणकारी है |
श्री भोमीयाजी के मंदिर से कुछ दूर जाते ही पहाड़ की चडाई प्रारम्भ होती है |यात्रा प्रवास-६ मील चदाव ,६ मील परिब्रह्मन , व ६ मील उतराई कूल मिलाकर १८ मील का रास्ता पार करना पड़ता है |इसलिए पाहिले श्री भोमीयाजी बाबा के दर्शन कर श्रीफल चदाकर आगे चले ताकि हमारी यात्रा निर्विघ्न शांतिपूर्वक संपन्न हो |
प्रथम टुंक : लब्धि के दातार भगवान महावीरं के प्रथम गंधार श्री गौतमस्वामी की है |
दूसरी टुंक : सत्रहवे तीर्थंकर श्री कुंथुनाथ भगवान की आती है |
तीसरा टुंक : श्री ऋषभानान शाश्वत जिन की टुंक आती है |
चौती टुंक : श्री चन्द्राननि शाश्वत जिन की टुंक आती है |
पांचवी टुंक : इकिस्वे तीर्थंकर श्री नमिनाथ भगवान की टुंक आती है |
छटी टुंक : अठारहवे तीर्थंकर श्री अहर्नाथ भगवान की आती है |
सातवी टुंक : उनिस्वे तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ भगवान की आती है |
आठवी टुंक: गयारवे तीर्थंकर श्री श्रेयान्सनाथ भगvaन की आती है |
नवमी टुंक : नवमे तीर्थंकर श्री सुविधिनाथ भगवान की आती है |
दसवी टुंक : छठे तीर्थंकर श्री पद्मप्रभा भगवान की आती है |
गयारवीं टुंक : बीसवे तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान की है |
बारहवी टुंक : आत्वे तीर्थंकर श्री चंद्रप्रभ भगवान की आती है |
तेरहवी टुंक : श्री आदिनाथ भगवान की आती है |
चौदहवी टुंक : चौदहवे तीर्थंकर श्री अनंतनाथ भगवान की है |
पन्ध्र्वी टुंक : दसवे तीर्थंकर श्री शीतलनाथ भगवान की है |
सोलहवी टुंक : तीसरे तीर्थंकर श्री सम्भवनाथ भगवान की है |
सत्रहवी टुंक : बारहवे तीर्थंकर श्री वासुपूजय भगवान की है |
अठार्ह्वी टुंक : चौथे तीर्थंकर श्री अभिनन्दन भगवान की है |
उन्निसवे टुंक : इस टुंक पर स्तिथ यहा के मुखयजलमंदिर का दर्शन होता है |यहां के मुलनायक श्री शामलिया पार्श्वनाथ भगवान है|
बीसवे टुंक : श्री शुभ गंधरस्वामी की आती है |
इकिस्स्वे टुंक : पन्ध्र्वे तीर्थंकर श्री धर्मनाथ की आती है |
बाइसवी टुंक : श्री वारिशेन शाश्वताजिन टुंक की आती है |
तेईसवी टुंक : श्री वर्धमानन शाश्वत जिन टुंक है |
चौबिस्वी टुंक : पांचवे तीर्थंकर श्री सुमतिनाथ भगवान् की आती है |
पच्चीसवी टुंक : सोलहवे तीर्थंकर श्री शांतिनाथ भगवान की आती है |
छबीसवी टुंक : श्री महावीर भगवान् की आती है |
सतताइसवी टुंक : सातवे तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की है |
अट्टाइसवी टुंक : तह्र्वे तीर्थंकर श्री विमलनाथ भगवान की है |
उन्न्तिस्वी टुंक : द्वितिया तीर्थंकर श्री अजिनाथ भगवान की आती है |
तीसवी टुंक : श्री नेमिनाथ भगवान की आती है |
इकतीसवी टुंक : तेइसवे तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान की है |
मधुबन उतरने पर पुन: भोमीयाजी बाबा का दर्शन कर विश्राम करना है | वापस पहुँचने तक ३-४ बज जाते है | पहुचने पर कुछ थकावट-सी जरूर महसूस होती है | परंतु रात भर में थकावट मिट जाती है |
इस प्रकार महान पवित्र सम्मेतशिखरजी पहाड़ की हमारी यत्रा संपूर्ण होती है |

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